मगर उनके तजुर्बे ही अपने देश के गहने हैं।
पता लगा कि वह भी सौदागरों के बुत हैं,
उनके यकीन करने के बुरे नतीज़े अब सहने हैं।
लूट की आदत बन गयी, बाज़ार में खुला व्यापार,
अभी तो बेईमानी के बहुत सारे नाले बहने हैं।
ज़माने के खजाने की पहरेदारी में जो लोग लगे
बेईमानी और रिश्वत उनकी सगी बहने हैं।
कमबख्त, उस्तादों से कौन सफाई मांग रहा है अब
मौन कर रहा बयान, जो लफ्ज़ उनको कहने हैं।
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कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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1 टिप्पणी:
अब मौन के बयान की जिम्मेदारी तो लेखकों की है ..
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