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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

12/09/2010

ईमान का चेहरा-हिन्दी कविता (iman ka chehra-hindi kavita)

बहुत बार उजड़ा है चमन
माली के रहते,
लुट गया खज़ाना
पहरेदारों के रहते।
दूसरे इंसानों के दर्द पर क्या बयान करें
फुर्सत नहीं मिलती जिंदगी में
रोज आते ग़मों का तूफान सहते।
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जैसे जैसे पहाड़ पर वह चढ़ते जा रहे हैं,
जिदंगी के उनके लिये बदले नज़र आ रहे हैं।
वही लोग तंगहाली से होकर अमीरी के महल में पहुंचे
जो बेईमानी को ईमान का चेहरा बता रहे हैं।
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कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
http://dpkraj.wordpress.com

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1 टिप्पणी:

S.M.Masoom ने कहा…

जैसे जैसे पहाड़ पर वह चढ़ते जा रहे हैं,
जिदंगी के उनके लिये बदले नज़र आ रहे हैं।
वही लोग तंगहाली से होकर अमीरी के महल में पहुंचे
जो बेईमानी को ईमान का चेहरा बता रहे हैं।

bahut khoob

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