माली के रहते,
लुट गया खज़ाना
पहरेदारों के रहते।
दूसरे इंसानों के दर्द पर क्या बयान करें
फुर्सत नहीं मिलती जिंदगी में
रोज आते ग़मों का तूफान सहते।
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जैसे जैसे पहाड़ पर वह चढ़ते जा रहे हैं,
जिदंगी के उनके लिये बदले नज़र आ रहे हैं।
वही लोग तंगहाली से होकर अमीरी के महल में पहुंचे
जो बेईमानी को ईमान का चेहरा बता रहे हैं।
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कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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जैसे जैसे पहाड़ पर वह चढ़ते जा रहे हैं,
जिदंगी के उनके लिये बदले नज़र आ रहे हैं।
वही लोग तंगहाली से होकर अमीरी के महल में पहुंचे
जो बेईमानी को ईमान का चेहरा बता रहे हैं।
bahut khoob
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