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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

12/05/2010

हम अंधेरे में आंखें डाले हैं-हिन्दी कविता (hum andhere mein aahkhen dale hain-hindi gazal)

कहावत है पर किसने कब आस्तीन में सांप पाले हैं,
पर डसने का भय से बंद सोच, सच के मुंह पर ताले हैं।
शक है कि काले नाग भी इतने ही काले होंगे,
यहां तो आदमी के ख्याल उससे अधिक काले हैं।
जिन्हें ताज़ पहनाया वही विषधर बनकर डसने लगे
सिंहासन पर बैठे, हमारी आशा पर पांव डाले हैं।
मृगों की तरह नृत्य कर दिल जीत लिया जिन्होंने
लूटकर हमारे सपने बने अमीर, अब वह महल वाले हैं।
घर में जलते अकेले ‘दीपक’ की लौ भी चुरा ले गये
रौशन है उनका आंगन, हम अंधेरे में आंखें डाले हैं।
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कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
http://dpkraj.wordpress.com

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