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1/26/2011

अपनी जिंदगी कायरों की तरह बिता दो-हिन्दी व्यंग्य कविता (apni jindagi kayron ki tarah bita do-hindi vyangya kavita)

सभी लोग बेईमानी के साथ
जिंदा रहने के आदी हो गये हैं,
इसलिये ईमानदारी के लिये लड़ने से
अच्छा है
भ्रष्टाचार पर खामोश हो जाओ,
अपनी जिंदगी कायरों की तरह बिता दो।

जुल्म सहने का आदी हो गया है समाज,
मुर्दा कौम में कौन प्राण फूंक सकता आज,
कातिलों को बंट रहे हैं इनाम,
भलाई के ठेके ले रहे हैं वही लोग
जो ठगी के लिये हो गये बदनाम,
मत करो जंग जुर्म के खिलाफ
अपनी जिंदगी कायरों की तरह बिता दो।

अकेले किससे और कैसे लड़ोगे,
गुलामी और जुर्म की छत के नीचे
सांस लेकर खुश हैं लोग
तुंम किसकी खुशी के लिये मरोगे,
जिनको कातिलों की जंजीरों से
आज़ाद करने का करोगे काम,
वही लोग करेंगे तुम्हें बदनाम,
डर कर प्यार करने वाले ज़माने में
हौंसला भरने का कोई फायदा नहीं,
अपनी जिंदगी कायरों की तरह बिता दो।

फिर भी चले जाना बहादूरों की तरह
जब कोई पुकारे मदद के लिये,
अंधेरा हो जहां, जला देना वहां दिये,
कोई हमराह खड़ा होकर
जंग लड़ने के तैयार हो,
जो अपने मतलब का न यार हो,
तभी उठाना बीड़ा जंग लड़ने का
वरना आंख, कान और दिमाग बंद कर दो
अपनी जिंदगी कायरों की तरह बिता दो।
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कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
http://dpkraj.wordpress.com

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1 टिप्पणी:

निर्मला कपिला ने कहा…

फिर भी चले जाना बहादूरों की तरह
जब कोई पुकारे मदद के लिये,
अंधेरा हो जहां, जला देना वहां दिये,
कोई हमराह खड़ा होकर
जंग लड़ने के तैयार हो,
सही सन्देश दिय्ता इन पँक्तिओं दारा
धन्यवाद।

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