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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

10/06/2007

उनको शराब पीती है

लोग तो बस अपनी खुशी की खातिर जीते हैं
गम हो या खुशी का मौका बस जाम पीते हैं
कोई ख्वाहिश हो जाती है पूरी तो
नहीं हो तो भी अफ़सोस में पीते हैं
कहीं से अपने लिए उम्मीद हो तो
न हो तो भी नाउम्मीन्दी में पीते हैं
किसी से सवाल का जवाब मिल जाये तो
नहीं तो भी ग़ुस्से में पीते हैं
कोई मौका नहीं छोड़ते पीने का
नहीं मिलता तो भी पीते हैं
हर जाम पर पीती है शराब उनको
पर ग़लतफ़हमी यह कि हम उसे पीते हैं

2 टिप्‍पणियां:

राजीव तनेजा ने कहा…

बिलकुल सही फरमाया आपने...

रवीन्द्र प्रभात ने कहा…

सच बड़ा हीं कड़वा होता है, आपने सच कहा है इसलिए पहले तो आपको धन्यवाद!

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