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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

9/07/2007

रात के खामोश पल

रात के पहर
तुम कुछ पल अविचल ठहर जाओ
मुझे दिन भर के गुजरे
हर पल का हिसाब करना है
मुझे अपने से अलग होने दो
अपने दिन के रुप का अवलोकन
अंतर्दृष्टि से करना है

देखने दो वह कौन था
जिसने दिन भर संघर्ष किया
जिसने अपने बहते पसीने को देख अमर्ष किया
झूठे सुख पर मन में हर्ष किया
मुझे उसकी कहानी पढ़ना है

वह कौन था जो मन पर उठाएँ
अपने स्वार्थों का बोझ चलता रहा
उसके हर गतिविधि थी परमार्थ बिन
मया की मात्रा सारा दिन गिनता रहा
मुझे उससे साक्षात्कार करना है

रात के पल तुम ठहर जाओ
निरर्थक चिंताओं में गुजारा है पूरा दिन
तुम्हारे साथ जो खामोशी है
मेरे मन में चिंतन के द्वार पर
देती है दस्तक बार-बार
मुझे आत्ममंथन करना है
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1 टिप्पणी:

Shastri JC Philip ने कहा…

प्रिय छोटे भाई,

तुम्हारी रचनायें दिन प्रति दिन सशक्त होती जा रही हैं. जो अध्ययन एवं मनन तुम ने किया है वह इन रचनाओं में एक दम स्पष्ट है. लिखते रहो -- शास्त्री

मेरा स्वप्न: सन 2010 तक 50,000 हिन्दी चिट्ठाकार एवं,
2020 में 50 लाख, एवं 2025 मे एक करोड हिन्दी चिट्ठाकार!!

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