चाल बकुल की चलत हैं, बहुरि कहावैं हंस
ते मुक्ता कैसे चुंगे, पडे काल के फंस
ते मुक्ता कैसे चुंगे, पडे काल के फंस
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि जो लोग चाल तो बगुले की चलते हैं और अपने आपको हंस कहलाते हैं, भला ज्ञान के मोती कैसे चुन सकते हैं? वह तो काल के फंदे में ही फंसे रह जायेंगे। जो छल-कपट में लगे रहते हैं और जिनका खान-पान और रहन-सहन सात्विक नहीं है वह भला साधू रूपी हंस कैसे हो सकते हैं।
संकलन कर्ता का अभिमत-
आजकल हमने देखा होगा कि धर्म के क्षेत्र में ऐसे लोग हो गए है जो बातें तो आदर्श की करते हैं पर उनका ऐक ही उद्देश्य होता है कि किसी भी तरह अपने लिए माया का अधिक से अधिक संग्रह करना कहने को वह साधू संत कहलाते हैं और उनके द्वारा प्रायोजित शिष्य भी उन्हें भगवान का अवतार कहते हैं पर उन्हें कभी भी उन्हें आध्यात्मिक गुरू नही माना जा सकता है। उनकी वाणी में हमारे पुराने धर्म ग्रंथों का महा ज्ञान तोते की तरह रटा हुआ होता है और उनका सामान्य व्यवहार देखकर कभी भी यह नही कहा जा सकता कि वह उस ज्ञान को धारण किये हुए है। ऐसे लोगों को धर्म का व्यापार करने वाला तो कहा जा सकता है पर साधू-संत नही माना जा सकता है चाहे वह कितना भी जतन कर लें।
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