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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

8/24/2007

अपने में इतना मत डुबो

स्वार्थ में अपने इतना मत डूबे रहो कि
समय पड़ने पर अकेले पड़ जाओ
इतना भी अकेले ही न रहो कि
जिन्दगी में बिना साथी रह जाओ
अपनों से अपने लिए मोहब्बत तो सभी करते हैं
कुछ गैरों से भी निभाना सीख लो
कहीँ ऐसा न हो जब अपने दूर हो जाएँ
गैरों के शब्दों के लिए भी तरस जाओ

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