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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

8/28/2007

कोई तो जवाब दे आदमी

अपने मुख से तीव्र आवाज में
शब्दों को बाहर व्यक्त करते हुए
अपने कानों से शोर सुनने का आदी

कर रहा है कोलाहल के बीच
शाति की तलाश करता हुआ आदमी

हर क्षण अपने मन के सपने को साकार
होते देखने की इच्छा लिए
सारी दुनिया की दौलत अपने घर में
ही भरने का अरमान सजाये
ऊपर हाथ उठाकर आकाश की तरफ
सुख के लिए प्रार्थना करता आदमी

चारों और विष फैलाता
अपने लिए अमृत ढूँढता आदमी
अपने अक्ल पर पर्दा डालकर
दूसरे की सोच को सच मानता
कैसे संभव है जो पेड बोया ही नहीं
उसके फल मिल जाएँ इस धरती पर
कोई तो जवाब दे इस बात का आदमी

2 टिप्‍पणियां:

बसंत आर्य ने कहा…

जबाब तो आप ही बताईए. हमे आपसे ही उम्मीद है.

mamta ने कहा…

सोच बदलने की जरुरत है।

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