जो अपने ही बोले शब्द का समझ नहीं पाते अर्थ
वह देवताओं के सात्विक भाव में ही ढूंढते अनर्थ
लिखेंगे गीतों में गालियाँ, शोर को समझें तालियाँ
खामोशी से बैर होता, वाणी से बोलें शब्द व्यर्थ
कान होते हुए बहरे , आंख के रहते हुए अंधे
भाषा और शब्द की सम्मान का क्या समझे अर्थ
अंग्रेजी पढे पर अपशब्दों में होता शक्ति का भ्रम
दूसरे का मजाक बनाएं, अपने दोष से मुहँ छिपाएं
ऐसे लोगों से वार्ता करना होता सदैव व्यर्थ
कहैं दीपक बापू ऐसे लोगों की कभी न सुनो
उपेक्षा के भाव से ही उन्हें हराने में होंगे समर्थ
आनंद उठाने का सबसे अच्छी तरीका यह है कि आप एकांत में जाकर ध्यान
लगायें-चिंत्तन (Anand Uthane ka tareeka-Chinttan)
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रोकड़ संकट बढ़ाओ ताकि मुद्रा का सम्मान भी बढ़ सके।
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हम वृंदावन में अनेक संत देखते हैं जो भल...
7 वर्ष पहले
2 टिप्पणियां:
अरे बाप रे इतनी गूढ़ और नाराजगी भरी कविता।
वैसे एक तरह से आप सच ही कह रहे है।
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