
जब पीते थे तो कोई
बुलाता नहीं था
मांगते थे तो कोई
पिलाता नहीं था
जब छोड़ दीं तो
सब बुलाते हैं
जैसे मयखाना खोल लिया हो
बोतल खोल देते हैं
जैसे अमृत घोल दिया हो
वाह री मय तेरी माया
आज हम आगे तू पीछे
कभी आगे तू और मैं पीछे था
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कुछ पल का नशा
फिर ढ़ेर सारी हताशा
मय अगर अमृत जैसी होती
तो सारा जहां नशे में डूबा होता
ऊपर वाला कितना भी ताकत दिखाता
पर उसका जोर नहीं होता
जब मय नहीं है अमृत जैसी
तब यह हाल है कि
जो पीता है
उस पर चढ़ कर
इतना ऊपर उठा देती है
ऊपर वाला भुला देती है
अगर अमृत होती तो वह
खुद ऊपर वाला होता
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2 टिप्पणियां:
एक अच्छी शिक्षाप्रद रचना है।
ऊपर वाला कितना भी ताकत दिखाता
पर उसका जोर नहीं होता
जब मय नहीं है अमृत जैसी
तब यह हाल है कि
जो पीता है
उस पर चढ़ कर
इतना ऊपर उठा देती है
ऊपर वाला भुला देती है
सुंदर रचना।
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