तय किया था कि हम बीस ओवरीय विश्व कप प्रतियोगिता में भारत आस्ट्रेलिया का मैच देखेंगे, मगर नहीं देख पाये। क्रिकेट दर्शन से हमने तौबा कर ली थी पर कहते हैं कि न आदमी अपनी आदत से बाज़ नहीं आता। क्रिकेट मैच चला देते हैं और इधर इंटरनेट पर भी बैठ जाते हैं-अपने आपको तसल्ली देते हैं कि हम क्रिकेट मैच नहीं देख रहे। अलबत्ता यह तय बात है कि अब देखते भी हैं तो देशों के बीच के मैच देखते हैं-यह क्लब स्तरीय प्रतियोगिताऐं हमारी नज़र में दोयम दर्जे की है। एक तरह से सस्ते बज़ट की फिल्मों की तरह-प्रमाण यह है कि सुनने में आया है कि अब इन पर वैसे ही मनोरंजन कर लगाने की तैयारी हो रही हैं जैसा फिल्मों पर लगता है।
बहुत समय बाद किसी मैच को देखने का ख्याल आया पर बिज़ली ने वह भी छीन लिया। पूरे आठ घंटे कालोनी की बिजली गायब रहीं-इसमें बीस ओवर क्या पचास ओवर का मैच भी निपट जाता है। हमने भी भुला दिया और रात को कालोनी के पार्क में घूमने चले गये। मगर कहते हैं न कि सब कुछ आपके हिसाब से नहंी चलता। क्रिकेट मैच हमने देखना छोड़ा और जब देखने का विचार किया तो वह दिखाई नहीं दिया। फिर उसका ख्याल छोड़ा तो फिर वह भी लौट कर आया। हमारे जैसे परेशान चार पांच युवक उस पार्क में भी आये। उनमें से एक मोबाईल पर स्कोर किसी से पूछ रहा था-‘ मैच का क्या चल रहा है।’
वहां से जवाब आया तो वह अपने साथियों को बता रहा था‘सोलह ओवर में 160 रन!
हमने सोचा कि शायद बीसीसीआई की टीम का होगा। खुश हुए, चलो आज जीत तो दूसरे मैच में भी मजा आयेगा। तब देखेंगें।
इसी बीच दूसरा बोल पड़ा-‘लगता है कहीं आज तो इंडिया की टीम हार न जाये।’
उसने भारत शब्द उपयोग नहीं किया यह सुनकर अच्छा लगा क्योंकि तब यह सदमे जैसा लगता।
मतलब यह स्कोर आस्ट्रेलिया का था। हमारा मन फक हो गया। फिर पार्क के चक्कर काटने लगे।
घर आये तब भी अंधेरा था। न कंप्यूटर खोल सकते थे और न ही टीवी देख सकते थे। ऐसे में अपना ट्रांजिस्टर निकाला और उस पर दिल्ली दूरदर्शन का स्टेशन लगाया। बीसीसीआई का स्कोर था चार विकेट पर 24 रन! फिर शायद पांचवें खिलाड़ी के आउट होने की आवाज सुनाई दी। बीसीसीआई की टीम हार की तरफ बढ़ रही थी ट्रांजिस्टर बंद कर दिया। बाद में एक दो बार खोला तो उद्घोषकों की चर्चा में बीसीसीआई के बुरे प्रदर्शन की बात सुनाई दी।
बीसीसीआई की टीम हारी। सच बात तो यह है कि इस टीम के अगले दौर में पहुंचने की संभावनायें अब बहुत कम है। दो साल पहले बीसीसीआई की टीम ने बीस ओवरीय प्रतियोगता का विश्व कप जीता था तब भारत में क्रिकेट की लोकप्रियता लगभग खत्म होने के कगार पर थी पर उसे जीवनदान मिल गया जिससे क्लब स्तरीय प्रतियोगिताओं का जन्म हुआ और वह कमाई का धंधा बना। भारत देश इस क्रिकेट का कितना बड़ा सहारा है यह इनाम वितरण के समय दिखने वाले कंपनियों के बोर्ड देखकर समझा जा सकता है जिनमें से अधिकतर भारत के व्यापार जगत में सक्रिय हैं। अनेक लोग क्लब स्तरीय प्रतियोगता के आयोजन पर होने वाली धाधलियों से बहुत नाराज हैं पर देश की नयी पीढ़ी का इससे जुड़ाव जिस ढंग से हुआ है वह आश्चर्यजनक है। इसके बावजूद यह सच है कि यह देश विजय को सलाम करता है। अगर इस विश्व कप में बीसीसीआई की टीम हारती है तो एक बार फिर क्रिकेट की लोकप्रियता गिर सकती है।
कुछ लोग बीसीसीआई की टीम को समग्र भारत का प्रतिनिधि नहंी मानते। इसका कारण यह है कि उस पर कुछ खास क्षेत्रों के लोगों का प्रभाव अधिक है। दूसरा यह भी कि क्लब स्तरीय प्रतियोगिता आयोजित करने वाली जो समिति है वह बीसीसीआई की है पर उसे अलग दिखाया गयां जो कि एक मजाक था। इस समिति ने भारत में अनुमति न मिलने पर पर दक्षिण अफ्रीका में प्रतियोगिता की। इसका सीधा मतलब यह है कि बीसीसीआई और उसकी समितियां कंपनियों की तरह है जो केवल व्यापार में रुचि रखती हैं। अब किसी कंपनी में सभी कर्मचारी भारतीय हों पर वह संपूर्ण देश की प्रतिनिधि तो नहीं हो जाते। अलबत्ता क्रिकेट अब फिल्म की तरह मनोरंजन हो गया है इसलिये इसमें उसी तरह उतार चढ़ाव आयेंगे। इसलिये यह वेस्टइंडीज में होने वाली बीस ओवरी प्रतियोगिता भले ही मनोरंजन न हो पर भारत में उसका आधार तो यही है। टीम विश्व जीतेगी तो ही लोग अगली फिल्म देखने को तैयार होंगे। बहरहाल पूरी शिद्दत के साथ क्रिकेट मैच देखने का अब हमारा इरादा नहीं रहा और इसका कारण आस्ट्रेलिया से इस तरह हार जाना है। अगर बीसीसीआई की टीम खाली हाथ लौटती है तो यकीनन फिर क्रिकेट की लोकप्रियता गिरेगी इसमें संदेह नहीं है।
---------------- कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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1 टिप्पणी:
लोकप्रियता क्या, इस चार सौ बीस गेम पे प्रतिबंध लगना चाहिए /
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