जीने की खातिर
जिंदगी दांव पर मत लगाना,
जाना उतना ही दूर
जहां से संभव हो घर लौट आना।
जिंदगी के मायने सभी नहीं जानते,
कायदों को बंधन की तरह मानते,
जज़्बात तो हवा के झौंके हैं
कभी हंसी तो कभी गम के,
ढेर सारे आते मौके हैं,
छोटे पल के लिये
पूरी जिंदगी उनमें न बहाना।
ललचाते हैं शयें बेचने वाले,
पुचकारते हैं, खून खींचने वाले,
सुनना सभी की बात,
विचार करना दिन और रात,
अपना दिल सस्ते में दाव पर न लगाना।
जिंदगी एक समंदर है,
विष और अमृत समाया इसके अंदर है,
मंथन के लिये अक्ल का होना जरूरी है,
जिंदा रहना भी एक मजबूरी है,
मोहब्बत के वायदे सस्ते होते हैं,
बाद में उनको महंगी जिंदगी में ढोते हैं,
इसलिये जब तक तय न कर लो
अपने मकसद और इरादे,
ख्यालों के जुए में अपने हाथ न आजमाना।
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कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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