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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

12/23/2009

तसल्ली के चिराग-हिन्दी शायरी (tasalli ke chirag-hindi shayri)

सर्वशक्तिमान का अवतार बताकर भी

कई राजा अपना राज्य न बचा सके।

सारी दुनियां की दौलत भर ली घर में

फिर भी अमीर उसे न पचा सके।

ढेर सारी कहानियां पढ़कर भी भूलते लोग

कोई नहीं जो उनका रास्ता बदल चला सके।

मालुम है हाथ में जो है वह भी छूट जायेगा

फिर भी कौन है जो केवल पेट की रोटी से

अपने दिला को मना सके।

अपने दर्द को भुलाकर

बने जमाने का हमदर्द

तसल्ली के चिराग जला सके।

कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://rajlekh.blogspot.com

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