दौलत बनाने निकले बुत
भला क्या ईमान का रास्ता दिखायेंगे।
अमीरी का रास्ता
गरीबों के जज़्बातों के ऊपर से ही
होकर गुजरता है
जो भी राही निकलेगा
उसके पांव तले नीचे कुचले जायेंगे।
-----------
उस रौशनी को देखकर
अंधे होकर शैतानों के गीत मत गाओ।
उसके पीछे अंधेरे में
कई सिसकियां कैद हैं
जिनके आंसुओं से महलों के चिराग रौशन हैं
उनको देखकर रो दोगे तुम भी
बेअक्ली में फंस सकते हो वहां
भले ही अभी मुस्कराओ।
http://rajlekh.blogspot.com
यह आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप का चिंतन’पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.अनंत शब्दयोग
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
4.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान पत्रिका
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें