इतने धोखे खाये हैं
अब बिना वादे लिये
हम साथ निभाते हैं।
स्वर्णिम सिद्धांत लगा हाथ
इसलिये नहीं पछताते हैं।
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शव हो गये इंसानों से
अपनी हमदर्दी जतायें।
पत्थर के नीचे दबी
मिट्टी हो गयी देह पर
मत्था टेककर
तरक्की की आशा जगायें।
कहें दीपकबापू श्रद्धा से
जिनका कभी नाता नहीं रहा
श्राद्ध का करें आयोजन
अपनी छवि पाखंड के
प्रचार से चमकायें।
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अपना उधार
उससे महल में जाकर कैसे मांगें
पहरा उन्होंने लगा दिया है।
सभी कर्णो पर
बज रहा उनके जयजयकार का नारा
कौन सुनेगा यह आवाज कि
हमें उसने दगा दिया है।
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