पाकिस्तान के मीडिया चैनल भारतीय सेना के सीमित सशस्त्र हमले को केवल
प्रचार बता रहे हैं। उनके प्रसारण में भारत के विरुद्ध प्रचार तो है पर वह
इस बहाने नवाज शरीफ तथा अन्य राजनीतिक नेताओं के बयानों दिखाकर अनजाने या जानबूझकर
वहा की ढुलमुल लोकतांत्रिक प्रणाली को बचाने तथा सेना को नेपथ्य में ढकेलने के पथ
पर चल पड़े हैं। वहां सारी नेताबिरादरी भारत की तरह एक हो रही है और यही वहां के
सेनाध्यक्ष राहिल शरीफ के लिये संकट का विषय है जो नवंबर में तय सेवानिवृति से
बचकर अपने पद आगे भी बने रहने की इच्छा करता है ताकि उसकी सुविधायें तथा संपदा सचय
का काम चलता रहे।
1971 की युद्ध हमें याद है जब बचपन
में रेडियो पर भारतीय सेना के पराक्रम की खबर सुनकर खुश होते थे। 45 वर्ष बाद यह युद्ध जैसा समाचार
देखकर पुरानी यादें आ रही हैं। दायें तरफ टीवी पर भारतीय चैनल चल रहा है और
बांयें कंप्यूटर पर कुछ देर तक पाकिस्तान का देख रहे थे-उनकी
मूर्खतापूर्ण बातें सुनकर बंद कर दिया। एकदम परस्पर विरोधी समाचार हैं पर
इधर जो भारतीय चैनलों पर अनेक विशेषज्ञ पाकिस्तान से बड़े हमले का भय मान रहे हैं
वह हमें नहीं लग रहा है क्योंकि पाकी चैनल तो ऐसे चीख रहे हैं जैसे कि उन्होंने आज
कोई किला फतह कर लिया है। मतलब वह जनता को प्रसन्न कर रहे हैं जिसके चलते
भारतीय सेना की कार्यवाही का प्रत्युत्तर देने का दबाव उन पर नहीं रहेगा। दिलचस्प
बात यह कि उनके पास अपने हवाले से खबरें कम भारतीय प्रचार माध्यमों से ज्यादा आ
रही हैं जिसका खंडन वह अपने दृष्टिकोण से इस तरह कर रहे हैं जैसे पाकिस्तानी सेना
ने कोई मैदान मार लिया है।
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