हम इतिहास पढ़कर केवल नायकों तथा खलनायकों पर अपनी राय कायम करते हैं जबकि उसमें बहुत सारे प्राकृत्तिक सूत्र भी छिपे मिलते हैं। हमने श्रीमद्भागवत का अध्ययन किया तो पाया कि उसमें अनेक ऐसे प्राकृत्तिक सिद्धांत भी हैं जिनकी चर्चा बहुत कम होती है। उसी तरह पाकिस्तान के बारे में जब आजादी के बाद का इतिहास पढ़कर अपनी राय कायम करते हैं जबकि उसके चारों प्रांतों का-सिंध, पंजाब, बलूचिस्तान तथा सीमाप्रांत- भारतीय भूभाग से अटूट संबंध रहा है। अफगानिस्तान से आकर शेरशाह सूरी भारत पर राज्य कर चुका है जिसने काबुल से कलकत्ता तक मार्ग बनाया उसे हम आज भी याद करते हैं।
युद्ध तो पहले भी हुए थे पर पूर्व से पश्चिम जाकर विजय बहुत कम नायकों को मिली। अलबत्ता पश्चिम से पाकिस्तान में घुसने वाले आगे ही बढ़ते आये। हम कोई युद्धविशेषज्ञ नहीं है पर हमारा मानना है कि भारत अपनी सेना अफगानिस्तान तथा ईरान में उतारकर वहां से पाकिस्तान पर हमला करे। चाहे तो छद्म युद्ध भी लड़ सकता है। बलूचिस्तान के लोग लड़ाके हैं। उनको इसी रास्ते भारी हथियार तथा चाहे तो विमान भी दिये जा सकते हैं-जिनका संचालन भारतीय सैनिक करें और भारत कहे कि वहां तो आजादी का युद्ध चल रहा है। ईरान अगर राजी हो जाये तो उसके बलूचिस्तान के इलाके से सीधे ही यह काम हो सकता है-उसके संबंध पाकिस्तान से खराब है और इतिहास गवाह है कि वहां से सिंध पर अनेक आक्रमण हुए और व ईरान जीता। अगर कश्मीर, राजस्थान, गुजरात तथा पंजाब से हमला करना है तो भी पहले पाकिस्तान की उत्तरी तथा पश्चिमी सीमा पर उसे उलझाना होगा। रहा परमाणु बम का सवाल तो पाकिस्तान अगर उसके प्रयोग के लिये तैयार हुआ तो समझ लीजिये रूस, अमेरिका तथा अन्य राष्ट्र उस पर इस भय से ऐसा हमला करेंगे कि उसके बम उसके घर में ही फट जायेगें जिससे विश्व में अन्य कहीं ऐसी कोशिश न हो। चीन खामोश रहेगा क्योंकि वह जानता है कि अगर भारत का कब्जा पाकिस्तान पर हुआ तो भी व्यापार के नाम पर वह अपना काम करता रहेगा।
भारत के कुछ रणनीतिकार मानते हैं कि पाकिस्तान का अस्तित्व रहना जरूरी है तो इतना किया ही जाना चाहिये कि वहां की सेना को इतना अपंग बना दिया जाये कि वह भारत के इशारे के बिना कुछ कर भी न पाये। वैसे पाकिस्तान में पंजाबी मुसलमानों ने कब्जा कर रखा है और उनको अन्य तीनों प्रांतों का समर्थन तो दूर अपने ही पंजाब में अधिक समर्थन नहीं मिलने वाला।
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