समेट लेते हैं पूरे जहांन का सामान
उनके संगमरमर के बने घर
रात को रौशनी से झिलमिलाते हैं,
ज़माना उजाले से वचिंत रहे
कोई उनको परवाह नहीं
अपने आंगन के किसी कोने में
अंधेरा देखकर वह तिलमिलाते है।
अपना खजाना भरते हुए थकते नहीं
कारिंदों को मजदूरी देने के नाम पर
ना में सिर हिलाते हैं।
कहें दीपक बापू चेहरे पर उदारता
नीयत में क्रूरता के भाव है जिनके
मजबूरों के हकों में
नारे लगाते हुए हाथ हिलाते हैं।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप
ग्वालियर मध्य प्रदेश
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
Gwalior Madhyapradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak Bharatdeep, Gwaliro
http://rajlekh-patrika.blogspot.com
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