आया फंदेबाज और बोला-‘‘
दीपक बापू सुना है
आजकल तुम हास्य कविता नहीं लिखते हो,
अपनी कलम से चिंत्तन में डूबे दिखते हो,
क्या देश के अच्छे दिन आ गये हैं,
या तुम पर ही खाली पीली अच्छे ख्याल छा गये हैं,
भले ही तुम फ्लाप कवि हो,
हम चाहते हैं कि
तुम्हारी भी सफल छवि हो,
समस्यायें यथावत हैं
महंगाई बेकार, भ्रष्टाचार और बीमारी
जनता अभी तक इनसे हारी,
तुम कुछ ऐसा लिखो कि
हमें लगे कोई हमारे दिल की कहता है,
हमें करता खुश खुद शब्दों का दर्द सहता है।
हंसते हुए बोले दीपक बापू
‘‘लोग हो गये हैं
सपने बुनने
और फिर उसे टूटते देखने के आदी,
सामानों के पीछे भागते हैं सभी
देह की करते बर्बादी,
हास्य कविताओं से लोग बहलते हैं,
फिर भी अपनी सोच नहीं बदलते हैं,
कविताओं से कुछ पल लोगों को हंसाया जा सकता है,
शब्दों की जादूगरी से सम्मान के लिये
किसी को फंसाया जा सकता है,
असत्य की तलाश बहुत मुश्किल है,
मायावी लोगों के पहरे के उसका बिल है,
सत्य घूमता सरे राह,
दबंग इतना कि भरता नहीं आह,
असत्य पर कितनी कवितायें लिखी,
पर निष्फल जाते दिखी,
सत्य तो नंगा है
उस पर क्या हंसा जा सकता है,
हम नहीं लिख पाते इसलिये हास्य कविता
क्योंकि वह हमारे चिंत्तन में बहता है।
--------
लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप
ग्वालियर मध्य प्रदेश
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
Gwalior Madhyapradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak Bharatdeep, Gwaliro
http://rajlekh-patrika.blogspot.com
यह आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप का चिंतन’पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.अनंत शब्दयोग
4.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान पत्रिका
5.दीपक बापू कहिन
6.हिन्दी पत्रिका
७.ईपत्रिका
८.जागरण पत्रिका
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें