अपने दिल के हाथ
हम क्यों इतना मजबूर हो जाते हैं
गुनाह हमने जो किये नहीं
उनका हिसाब देते हैं जमाने को
कसूरवारों के शोर के आगे
अपनी गर्दन क्यों झुकाते हैं।
कहें दीपक बापू
नकारा लोग
करते हैं अपनी कामयाबी का बयान
ऊंची आवाज में
हम क्यों उसमें बहक जाते हैं,
सच समझने की तमीज नहीं जमाने को
हम अपनी सफाई के बयान में
क्यों अपनी जुबां थकाये जाते हैं।
हम क्यों इतना मजबूर हो जाते हैं
गुनाह हमने जो किये नहीं
उनका हिसाब देते हैं जमाने को
कसूरवारों के शोर के आगे
अपनी गर्दन क्यों झुकाते हैं।
कहें दीपक बापू
नकारा लोग
करते हैं अपनी कामयाबी का बयान
ऊंची आवाज में
हम क्यों उसमें बहक जाते हैं,
सच समझने की तमीज नहीं जमाने को
हम अपनी सफाई के बयान में
क्यों अपनी जुबां थकाये जाते हैं।
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak Bharatdeep, Gwaliro
http://rajlekh-patrika.blogspot.com
यह आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप का चिंतन’पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.अनंत शब्दयोग
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
4.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान पत्रिका
5.दीपक बापू कहिन
6.हिन्दी पत्रिका
७.ईपत्रिका
८.जागरण पत्रिका
९.हिन्दी सरिता पत्रिका
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.अनंत शब्दयोग
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
4.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान पत्रिका
5.दीपक बापू कहिन
6.हिन्दी पत्रिका
७.ईपत्रिका
८.जागरण पत्रिका
९.हिन्दी सरिता पत्रिका
1 टिप्पणी:
एक टिप्पणी भेजें