समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

3/16/2012

आओ कुछ लिखें-हिन्दी लेख (aao kuchh likhe-hindi lekh)

            सचिन तेंदुलकर का सौवां शतक लग गया-प्रचार माध्यम इसे महाशतक भी कह रहे हैं। इसका मतलब यह है कि हमारे देश के प्रचार माध्यमों के लिये कम से कम इस दिन कोई अन्य विषय चर्चा के लिये नहीं रहने वाला है। कल सभी अखबारों में मुख्य पृष्ठ पर सचिन तेंदुलकर की तस्वीर छपेगी। कुछ संपादकीय भी लिखे जायेंगे। बहरहाल टीवी चैनलों और एफ. एम रेडियो वालों के लिये यह मौका है जब वह सचिन को बधाई देने के कार्यक्रम के नाम पर टेलीफोन कंपनियों की जेब भरें। बाजार के सौदागर-वामपंथी विचार धारा के लोग उनको पूंजीपति कहते हैं-और उनके प्रचार माध्यमों ने पूरी तरह समाज को बौद्धिक रूप जकड़ लिया है। हम इसके जाल से बचने का उपाय भारतीय अध्यात्मिक दर्शन को मानते हैं पर हैरानी की बात है कि धर्म के नाम पर ठेकेदारी करने वाले भी इसी बाज़ार से प्रायोजित होते हैं और कहीं न कहीं फिल्म,राजनीति, क्रिकेट तथा अन्य आकर्षक क्षेत्रों में सक्रिय पात्रों की प्रचार में सहायता करते हैं। इसी कारण अनेक संतों तक ने सचिन को भारत रत्न देने की मांग तक कर डाली। कुछ प्रचार कर्मी तो अपने कार्यक्रम में इतना अतिउत्साह भरते हैं कि वह क्रिकेट को भारत का धर्म तक कह जाते हैं।
       हमें इन सबसे आपत्ति नहीं है। किसी समय क्रिकेट को हम बड़ी शिद्दत से देखते हैं। जब इस खेल मेें फिक्सिंग के आरोप लगे तो मन विरक्त हो गया। क्रिकेट अंततः एक खेल है। इस खेल को दो प्रकार के लोग जुड़े दिखते हैं। एक तो वह जो कमाने के लिये खेलते हैं तो कुछ युवक इस इरादे से खेलते हैं कि शायद उनके हाथ भी वर्तमान खिलाड़ियों जैसा भाग्य शायद हाथ जाये। दूसरे जो शौक के लिये मनोरंजन के रूप में आनंद उठाते हैं।
            फिक्सिंग के आरोप के साथ ही बीसीसीआई की टीम के लगातार पिटने से भारत में इस खेल से लोग विरक्त हो गये थे। बाद में बीस ओवरीय प्रतियोगिता का विश्व कप जीतने के बाद फिर इसे लोकप्रियता मिली। उस समय हमने लिखा भी था कि यह जीत शायद भारत को इसलिये भेंट की गयी है ताकि यहां के लोगों से पैसा लगातार खींचा जा सके क्योंकि विश्व क्रिकेट में वही इकलौता सहायक है जो उसे अब चला रहा है। इससे पुराने दर्शकों की वापसी हुई पर वह पहले से कम ही रही। हम जैसे लोगों के लिये क्रिकेट पर चर्चा करना अब वक्त खराब करने जैसा है। ऐसे में जब समाचार चैनल क्रिकेट जबरन थोपते हैं तो इच्छा होती है कि मनोरंजन चैनल पर जायें। वहां भी कार्यक्रम ऊब पैदा करने वाले दिखते हैं। रेडियो पर जाते हैं तो वहां भी वही क्रिकेट कानों मे सुनाई देता है। हम बहुत पहले जब अखबार में काम करते थे तो वहां कभी अच्छे समाचार न मिलने या पृष्ठ को चमकाने के लिये फोटो लगा देते थे। उनके फिलर तक कहते थे। क्रिकेट आज के समाचार और मनोरंजन प्रसारण माध्यमो के लिये इसी तरह का फिलर बन गया है जो विज्ञापनों की सामग्री के प्रसारण में काम आता है। हमारे पास भी जब कोई लिखने का विषय नहीं होता तो क्रिकेट पर लिख देते हैं। दरअसल जब क्रिकेट से ध्यान हटाते हैं तो देश की हालत देखकर चिंता होने लगती है। महंगाई बढ़ी रही है और चरित्र सस्ता होता जा रहा है। आर्थिक विकास हो रहा है पर मानवीयता का हृास हो रहा है। अपने आसपास का वातावरण विषाक्त होता देखकर लगता है कि वाकई हम इसलिये जी रहे हैं क्योंकि परमात्मा से प्रदत्त सांसों का राशन अभी उपयोग करने के लिये बाकी है। इधर लिखना कम हो गया है। यह विराम इसलिये देते हैं कि कुछ नया लिखें। हम आंखें खोलकर सारे दृश्य देखते हैं फिर जब उनको बंद कर ध्यान लगाते हैं तो लगता है कि वाकई अपने से बुद्धिमान लोग हमे भेड़ की तरह चरा रहे हैं। इतना ही नहीं महाडरपोक लोगों से हम डर रहे हैं। लालची और लोभी लोग हमें नैतिकता का पाठ पढ़ा रहे हैं। सिंहासन पर विराजमान लोग हमें त्याग करने की राय दे रहे हैं।
              महत्वपूर्ण बात यह कि हम खेल और मनोरंजन के अंतर को नहीं जानते। बाह्य वस्तुओं में अपनी आंखें गढ़ाने से हमें तभी तक सुख मिलता है जब तक वह थक नहीं जाती। आंखें थकती हैं तो हम बंद कर देते हैं। तब भी हम अपने अंदर देखकर मनोरंजन कर सकते हैं पर वह कला केवल ध्यानियों के पास ही होती है। आराम करना और सो जाना अलग विषय हैं। सोते हैं पर आराम करते हैं यह कौन जान पाता है। अपनी नींद को सपनों के सहारे काटने से आराम नहीं मिलता। हम अपने तनाव से बचने के लिये जिन साधनों की मदद लेते हैं वह उसे अधिक बढ़ाते हैं। मूल बात यह है कि हम अपने दिल को दूसरों के सहारे बहलाते हैं और इसलिये वह अपने कार्यक्रम थोपते हैं। जिनसे ऊब पैदा होती है। फेसबुक पर एक सज्जन ने प्रश्न किया था कि आप अध्यात्म के विषय पर चिंतन और सामाजिक विषयों पर हास्य कविता लिखने का काम कैसे कर लेते हैं। यह दोनों विरोधाभासी काम करते हैं तो आश्चर्य होता है।
         हमने इसका जवाब नहीं दिया पर जब आत्ममंथन किया तो पाया कि अध्यात्म चिंत्तन लिखते हुए पाठकों पर हम प्रभाव छोड़ पायें या नहीं पर हमारे मन मस्तिष्क की ग्रंथियों अत्यंत सक्रिय होती जा रही हैं। पता नहीं ज्ञान कितना है पर भटकते हुए समाज को देखकर हमारे अंदर हास्य बोध इतने स्वाभाविक ढंग से पैदा होता है कि पता ही नहीं चलता। बहरहाल बहुत दिनों बाद किसी विषय पर लेख लिखने का विचार आया सो लिख दिया।
वि, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak Bharatdeep, Gwaliro
http://rajlekh-patrika.blogspot.com

यह आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप का चिंतन’पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.अनंत शब्दयोग
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
4.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान पत्रिका

 5.दीपक बापू कहिन
6.हिन्दी पत्रिका 
७.ईपत्रिका 
८.जागरण पत्रिका 
९.हिन्दी सरिता पत्रिका

कोई टिप्पणी नहीं:

लोकप्रिय पत्रिकायें

हिंदी मित्र पत्रिका

यह ब्लाग/पत्रिका हिंदी मित्र पत्रिका अनेक ब्लाग का संकलक/संग्रहक है। जिन पाठकों को एक साथ अनेक विषयों पर पढ़ने की इच्छा है, वह यहां क्लिक करें। इसके अलावा जिन मित्रों को अपने ब्लाग यहां दिखाने हैं वह अपने ब्लाग यहां जोड़ सकते हैं। लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर