हमने तो चमन की तरक्की मांगी थी
मालियों ने सभी पेड़ पौधे उजाड़ कर
बताया कि
पुराना तबाह करेंगे
तभी तो नया बनाएंगे,
इंतजार करो
सामान आने दो
तुम्हारा सपना सच कर दिखाएँगे।
कहें दीपक बापू
हम कोसते हैं
उस पल को जब याचना की थी
अब तो रेगिस्तान देख रहें हैं
सुना है दस साल में
घूरे के दिन भी फिरते हैं
पता नहीं हम कब तक
इसी आसरे अपना तरक्की का वहम
उज्जवल भविष्य की तरह कागजों में लिखाएँगे।
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak Bharatdeep, Gwaliro
http://rajlekh-patrika.blogspot.com
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