हम तो खड़े रहे दरख्तों की तरह
कई बार तूफानों का रास्ता बदल दिया,
अब गिरे हैं खुद जमीन पर
अपने ही माली की कुल्हाडियों से कटकर
कहें दीपक बापू
अपना दर्द किससे बयान करें
इस जहान में लोगों ने
सादगी को मूर्खता
और चालाकी का मतलब
गद्दारी में बदल दिया।
-------
खड़े रहना है अपने पांव पर
इस जमीन से रिश्ता तोड़ना
अब मुश्किल है।
आसमान से कभी
सूरज की तपती किरणें
बदन जलायेंगी,
कभी ठंडी हवाओ से
लड़ने का सहारा बन जायेंगी
चंद्रमा कभी अंधेरे में छिप जायेगा,
कभी चांदनी को साथ लायेगा,
कभी हम पानी को तरसेंगे,
कभी बादल अमृत लाकर बरसेंगे,
मगर यह तय है
ऊपर से कोई फरिश्ता
छत पर उम्मीद के आसरे नहीं बरसायेगा,
इंसानों में कोई वक्त पर काम आयेगा,
कहें दीपक बापू
बहुत साथी हैं अपने मतलब के लिये
किसी का इंसानों जैसा भी दिल है।
कई बार तूफानों का रास्ता बदल दिया,
अब गिरे हैं खुद जमीन पर
अपने ही माली की कुल्हाडियों से कटकर
कहें दीपक बापू
अपना दर्द किससे बयान करें
इस जहान में लोगों ने
सादगी को मूर्खता
और चालाकी का मतलब
गद्दारी में बदल दिया।
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खड़े रहना है अपने पांव पर
इस जमीन से रिश्ता तोड़ना
अब मुश्किल है।
आसमान से कभी
सूरज की तपती किरणें
बदन जलायेंगी,
कभी ठंडी हवाओ से
लड़ने का सहारा बन जायेंगी
चंद्रमा कभी अंधेरे में छिप जायेगा,
कभी चांदनी को साथ लायेगा,
कभी हम पानी को तरसेंगे,
कभी बादल अमृत लाकर बरसेंगे,
मगर यह तय है
ऊपर से कोई फरिश्ता
छत पर उम्मीद के आसरे नहीं बरसायेगा,
इंसानों में कोई वक्त पर काम आयेगा,
कहें दीपक बापू
बहुत साथी हैं अपने मतलब के लिये
किसी का इंसानों जैसा भी दिल है।
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak Bharatdeep, Gwaliro
http://rajlekh-patrika.blogspot.com
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