फिर सौदे जैसा लिख और दिख
बाज़ार के कायदे हैं अपने
जहां मत देख ईमानदार बने रहने के सपने
दाम तेरी पसंद का होगा
काम खरीददार के मन जैसा होगा
भाव होगा वैसा ही होगा जैसा दाम
शब्द होंगे तेरे, पर नाम कीमत देने वाले होगा
अपने नाम को आसमान में
चमकता देने की चाहत छोड़ देना होगा
वहां तो उसको ही शौहरत मिलेगी
जिसका घर भी उड़ता होगा
तू जमीन में रेंगना सीख ले
इशारों को समझ कर लिख
जैसा वह चाहें वैसा दिख
मत कर भरोसा शब्दों की जंग लड़ने वालों पर
अपनी जिन्दगी में तरसे हैं
वह कौडियों के लिए
उनका लिखा बेशकीमती हो गया
उनके मरने के बाद
अमीरों पर उनके नाम से रूपये बरसे हैं
पेट में भूख हो तो कलम तलवार नहीं हो सकती
करेगी प्रशस्ति गान किसी का
तभी तेरी रोटी पक सकती
कब तक लिखेगा लड़ते हुए
स्याही भी कोई मुफ्त नहीं मिल सकती
शब्दों को सजाये कई लोग घूम रहे हैं
पर खरीददार नहीं मिलता
मिल जाए तो बिक जाना
या फिर छोड़ दे ख्वाहिश
शब्दों से पेट भरने का
किसी से लड़ने का
दिल को तसल्ली दे वाही लिख
जैस मन चाहे वैसा दिख
फेर ले शब्दों के सौदागरों से मुहँ
वह तुझे देखते रहे
तू भी नज़रें घुमा कर देखता रहना
उनका पुतले और पुतलियों की तरह
दूसरों के इशारों नाचना भी
तेरी कई रचनाओं को जन्म देगा
पर ऐसा करता बिलकुल मत दिख
बस अपना लिख
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3 टिप्पणियां:
पेट में भूख हो तो कलम तलवार नहीं हो सकती
बहुत बढिया!!
पेट में भूक हो तो कलम को तलवार बनाना ही होगा -शब्दों से ही क्रांति लाना होगा ,लोगों को जगाना होगा उनसे कहना होगा की वे भूक से बचें /शब्दों ने ही क्रांतियाँ की है -यदि वक्त के साथ कलम को तलवार नहीं बनाया तो लेखक का पलायन कहलायेगा
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