कुछ यूंही ख्याल कभी आता है
भला सबके बीच में भी
आदमी खुद को
अकेलेपन के साथ क्यों पाता है
शायद दिल नहीं समझता दिल की बात
अपनों और गैरों में फर्क कर जाता है
अपनों के बीच गैरों की फिक्र
और गैरों के बीच
अपनों की याद में खो जाता है
कभी बाद में तो कभी पहले दौड़ता है
पर वक्त की नजाकत नहीं समझ पाता है
दूसरों पर नजरिया तो दिमाग खूब बनाता
पर अपना ख्याल नहीं कर पाता है
बाहर ही देखता है
आदमी इसलिए अन्दर से खोखला हो जाता है
समाधि से जीवन चक्र स्वतः ही साधक के अनुकूल होता है-पतंजलि योग सूत्र
(samadhi chenge life stile)Patanjali yog)
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*समाधि से जीवन चक्र स्वतः ही साधक के अनुकूल होता
है।-------------------योगश्चित्तवृत्तिनिरोशःहिन्दी में भावार्थ -चित्त की
वृत्तियों का निरोध (सर्वथा रुक ज...
3 वर्ष पहले
1 टिप्पणी:
कविता , गहरी अनुभूति छोड़ती हुई !मानवीय मूल्यों की सुंदर प्रस्तुति !
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