कुछ यूंही ख्याल कभी आता है
भला सबके बीच में भी
आदमी खुद को
अकेलेपन के साथ क्यों पाता है
शायद दिल नहीं समझता दिल की बात
अपनों और गैरों में फर्क कर जाता है
अपनों के बीच गैरों की फिक्र
और गैरों के बीच
अपनों की याद में खो जाता है
कभी बाद में तो कभी पहले दौड़ता है
पर वक्त की नजाकत नहीं समझ पाता है
दूसरों पर नजरिया तो दिमाग खूब बनाता
पर अपना ख्याल नहीं कर पाता है
बाहर ही देखता है
आदमी इसलिए अन्दर से खोखला हो जाता है
आनंद उठाने का सबसे अच्छी तरीका यह है कि आप एकांत में जाकर ध्यान
लगायें-चिंत्तन (Anand Uthane ka tareeka-Chinttan)
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रोकड़ संकट बढ़ाओ ताकि मुद्रा का सम्मान भी बढ़ सके।
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हम वृंदावन में अनेक संत देखते हैं जो भल...
7 वर्ष पहले
1 टिप्पणी:
कविता , गहरी अनुभूति छोड़ती हुई !मानवीय मूल्यों की सुंदर प्रस्तुति !
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