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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

10/18/2007

छोड़ जाते हैं अपना साथ

यूं तो चले थे साथ-साथ
थामे थे एक-दूसरे के हाथ
जीवन भर निभाने का वादा था
मझधार में थे दोनों
किनारा बहुत दूर था
कुछ हमने कहा कुछ उसने
बात करते ऐसा लगता था
जैसे बरसों पुराना है और
कई बरस रहेगा साथ
जो किनारे पर आये
वह मुहँ फिर कर चल दिए
अभी तक अपना समझ कर
खूब उन्होने किये थे वादे
और अभी हम हो गए
अजनबी उनके लिए
सच है रास्ते के साथी
नाव पर सवार मझधार से
किनारे तक ही होते हैं अपने
अपनी मंजिले और किनारे आते ही
छोड़ जाते हैं अपना साथ
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2 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत सुन्दर.

मीनाक्षी ने कहा…

अपनी मंजिले और किनारे आते ही
छोड़ जाते हैं अपना साथ
नाराज़ न होकर सोचती हूँ ....नदी का पानी सदा आगे को बढ़ता है... बढ़ने दूँ... किनारे खड़े होकर मंज़िल पाने वाले को बधाई दे दूँ ..

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