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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

10/10/2007

जिन्दगी जीने का अहसास

जिन्दगी के पल- पल में
दृश्य बदल जाते हैं
हर दृश्य में हम देखते हैं
बस अपने गुजरते पल
जिन्हें अपने दिमाग में
संजोये रख पाते हैं
दिखता बहुत कुछ और भी
पर हम कितना उसे देख पाते हैं
आंखों के सामने दृश्यों
आने-जाने का अर्थ यह नहीं है कि
हम उन्हें देख पाते हैं
जब तक दिलो-दिमाग तक
उनके होने का आभास न हो
हमने देखा यह नहीं कह पाते हैं
शायद इसलिये ही
अपने चारों और फैले रौशनी में भी
अपने मन में अँधेरा पाते हैं
शायद इसलिये कहते हैं कि
मन की आंखें खोल
दुनिया को अपनी दृष्टी में तौल
प कान होते हुए भी कहाँ सुन पाते हैं
जिन्दगी तो सभी गुजारते हैं
पर उसका अहसास दिल वाले ही कर पाते हैं

2 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

जिन्दगी तो सभी गुजारते हैं
पर उसका अहसास दिल वाले ही कर पाते हैं


-सही फरमाया, दीपक भाई.

Rachna Singh ने कहा…

very nice poem

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