जिन्दगी के पल- पल में
दृश्य बदल जाते हैं
हर दृश्य में हम देखते हैं
बस अपने गुजरते पल
जिन्हें अपने दिमाग में
संजोये रख पाते हैं
दिखता बहुत कुछ और भी
पर हम कितना उसे देख पाते हैं
आंखों के सामने दृश्यों
आने-जाने का अर्थ यह नहीं है कि
हम उन्हें देख पाते हैं
जब तक दिलो-दिमाग तक
उनके होने का आभास न हो
हमने देखा यह नहीं कह पाते हैं
शायद इसलिये ही
अपने चारों और फैले रौशनी में भी
अपने मन में अँधेरा पाते हैं
शायद इसलिये कहते हैं कि
मन की आंखें खोल
दुनिया को अपनी दृष्टी में तौल
प कान होते हुए भी कहाँ सुन पाते हैं
जिन्दगी तो सभी गुजारते हैं
पर उसका अहसास दिल वाले ही कर पाते हैं
समाधि से जीवन चक्र स्वतः ही साधक के अनुकूल होता है-पतंजलि योग सूत्र
(samadhi chenge life stile)Patanjali yog)
-
*समाधि से जीवन चक्र स्वतः ही साधक के अनुकूल होता
है।-------------------योगश्चित्तवृत्तिनिरोशःहिन्दी में भावार्थ -चित्त की
वृत्तियों का निरोध (सर्वथा रुक ज...
3 वर्ष पहले
2 टिप्पणियां:
जिन्दगी तो सभी गुजारते हैं
पर उसका अहसास दिल वाले ही कर पाते हैं
-सही फरमाया, दीपक भाई.
very nice poem
एक टिप्पणी भेजें