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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

7/23/2007

जो लड़े हैं जिन्दगी से

तिनका-तिनका जोड़कर
बनाती है चिड़िया आशियाना
उसे कुछ खरीदने कहीं नहीं जाना
भीषण गर्मी में पेड की छाया तले
सोया हुआ आवारा कुत्ता
न चादर और न तकिया
साहूकार जैसा आराम
करता है बैगाना

सूर्य की तपती गर्मी में
भैस तालाब बैठी
और विश्राम करती
नहीं जानती गर्मी का पैमाना
बरस रही है आसमान से
आग जमीन पर
रोटी के लिए जूझता मजदूर
उसे तो बस है पेट की आग बुझाना

कहैं दीपक बापू
जिन्होंने बिताई जिन्दगी
शरीर को आराम देकर
दिल से रहे बैचेन
ख़ून पसीना बहाकर
जो लड़े हैं जिन्दगी से
हर लम्हे का सुख-दुःख
उन्होने ही जाना

1 टिप्पणी:

Udan Tashtari ने कहा…

ख़ून पसीना बहाकर
जो लड़े हैं जिन्दगी से
हर लम्हे का सुख-दुःख
उन्होने ही जाना


---सत्य वचन.

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