दिन भर ईंट, पत्थर और
सीमेंट का मसाला तस्सल सिर
पर रखकर ढोती वह औरत
रात्रि में प्लास्टिक की छत से ढंकी
झौंपडी के बाहर आंगन में
बबूल की लकड़ी से
अग्नि जलाकर
उस पर रोटी सेंकती वह औरत
सुबह चाय बनाते हुए
अपने बच्चे को
गोद में बैठाकर
उसे बडे स्नेह से
मुस्कान बिखेरती
और दूध पिलाती वह औरत
अपने अनवरत संघर्ष से
इस सृष्टी में जीवन को ही
सहजता से जीवनदान देती
चेहरे पर शिकन तक नहीं आने देती
अपनी शक्ति और सामर्थ्य का
प्रतीक है वह औरत
समाधि से जीवन चक्र स्वतः ही साधक के अनुकूल होता है-पतंजलि योग सूत्र
(samadhi chenge life stile)Patanjali yog)
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*समाधि से जीवन चक्र स्वतः ही साधक के अनुकूल होता
है।-------------------योगश्चित्तवृत्तिनिरोशःहिन्दी में भावार्थ -चित्त की
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3 वर्ष पहले
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