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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

7/22/2007

यकीन और हिम्मत से डटे रहो

समझौता ग़मों से कर लो
दोस्ती नगमों से कर लो
महफ़िलों में जाकर
इज्जत की उम्मीद छोड़ दो
जहां सब सज-धज के आएं
वहां तुम्हें देखने की किसे फुर्सत है
सभी बोलें कम अपने लबादे
ज्यादा दिखाएँ
सोचें कुछ और
बोलें कुछ और
सुनकर अनुसना कर सकें तो
सबसे बतियाएं
अगर कोई अपने शब्दों से
घाव कर दे
तो उसका इलाज अपनी
तसल्ली और यकीन की
मरहमों से कर लो
कहैं दीपक बापू
अपनी शान दिखाने के चक्कर
तुम कभी न पडना
दूसरों की चमक में
अपने को अंधा न करना
जिनके चेहरे पर जितनी रोशनी है
उतना ही उनके मन में है अँधेरा
तुम अपने यकीन और हिम्मत के
साथ सबके सामने डटे रहो
किसी और में कुछ भी न ढूँढो
साथ अपने हमदमों को कर लो
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