रिश्तों को नाम देना
लगता है आसान
तब निभाने का
नहीं होता अनुमान
जब दौर आता है
मुसीबत का
अपने ग़ैर हो जाते हैं
ग़ैर फेर लेते हैं मुहँ
रिश्ता कामयाब नहीं कर पाता
अपनी वफ़ा का इम्तहान
कहना कितना आसान लगता है
कि तुम दोस्त ऐसे
मेरे भाई जैसे
तुम सखी ऎसी
बिल्कुल बहिन जैसी
जब आती है घडी निभाने की
तब न भाई का पता
न भाई जैसे दोस्त का पता
न बहिन का पता
न बहिन जैसी का पता
गलत निकलते हैं
अपनेपन के अनुमान
जरा सी बात पर
रिश्ते तैयार हो जाते हैं
होने को बदनाम
फिर भी अपनों से दूर
तुम मत होना
बेवफाई का बदला
तुम वफ़ा से ही देना
दुसरे करते हैं
विश्वास से खिलवाड़
तुम मत करना
कोई कितना भी
रिश्ते को बदनाम करे
तुम निभाते रहना
अपनी नीयत पर डटे रहना
चाहे धरती डोले
या गिरने वाला हो आसमान
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समाधि से जीवन चक्र स्वतः ही साधक के अनुकूल होता है-पतंजलि योग सूत्र
(samadhi chenge life stile)Patanjali yog)
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3 वर्ष पहले
3 टिप्पणियां:
उम्मीदों के भरोसे दुनिया चलती है। आपकी कविता में ये बात उभर कर आई है। अच्छा लिखा है।
सार्थक कविता-अपना पूरा सकारात्मक संदेश दे गई.
दीपक जी बढिया लिखा है।
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