एक अमीर के पुत्र विवाह
समारोह में खङा होकर
देख रहा हूँ धन कुबेरों
उच्च पदासीन और
मशहूर लोगों का जश्न
जाम से जाम टकराते
अपनी अमीरी और
संपन्नता पर बतियाते
सब हैं अपनी बात कहने में मग्न
कुछ होश में हैं कुछ बेहोश
कुछ लोग अपनी रईसी पर
इतराते हैं
कुछ अपनी बीमारी पर बतियाते हैं
बहुत जल्दी उकता जाता हूँ
सोचता हूँ बाहर के लोगों को
क्यों यहां स्वर्ग का अहसास होता है
मुझे तो लगता है कि
यहां नरक हैं
ऐसे इंसानों का जमघट है
जिनके बुद्धि और मन हैं भग्न
वर्षा के दिनों में
एक तंग बस्ती से निकलता हूँ
जहां सडक है कि नाला
पता ही नहीं चलता
बच्चे वहां पाने से खेल रहे हैं
मायें हैं अपनी बातचीत में मग्न
मुझे वहाँ भी नरक लगता है
पर जीते हैं गरीब और मजदूर
उसे स्वर्ग की तरह
हर मौक़े पर
बडे जोश से मनाते हैं जश्न
कहाँ स्वर्ग है
और कहाँ नरक
खङा है मेरे सामने
यह एक यक्ष प्रश्न
मैं ढूँढने की कोशिश करता हूँ
चलते-चलते उस बस्ती को
पार कर जाता हूँ
और हो जाता हूँ कहीं और मग्न
समाधि से जीवन चक्र स्वतः ही साधक के अनुकूल होता है-पतंजलि योग सूत्र
(samadhi chenge life stile)Patanjali yog)
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*समाधि से जीवन चक्र स्वतः ही साधक के अनुकूल होता
है।-------------------योगश्चित्तवृत्तिनिरोशःहिन्दी में भावार्थ -चित्त की
वृत्तियों का निरोध (सर्वथा रुक ज...
3 वर्ष पहले
2 टिप्पणियां:
इतना मार्मिक वर्णन है कि दिल दहल गया. हां, अपने आप को जांचने का एक अवसर भी मिल गया -- शास्त्री जे सी फिलिप
बंधुवर,
कहीं आपकी कविता का शीर्षक "यक्ष प्रश्न" तो नहीं है जो वर्तनी में भूल के कारण "यश प्रश्न" लिखा दिखा है.
अगर शीर्षक "यश प्रश्न" ही हो तो क्षमा!!
:)
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