(कविता किसी विषय को मेरे दिल-दिमाग में संजोये रखने का काम करती है)
उसकी तस्वीर देखकर
मैं मुस्कराकर रहा हूँ आज
संगमरमर के पत्थर से
कई हजार मजदूरों के
ख़ून पसीने से बना
दुनिया में प्रेम की निशानी के
रुप में उसका सीना तना
उसके लिए कहीं अस्त्र-शस्त्र से
कहीं शब्दों से होते थे प्रहार
अब वोट के लिए हो रहा प्रचार
खङा है सदियों से
अब भी उसे कहीं नहीं जाना
सफेदी में अब कोई
नया उजाला नहीं आना
फिर भी कभी बंटी-बबली बेच जाते हैं
कभी लोग हवा में सदेश लिख जाते हैं
पर न वह सुनता है
न वह कुछ कहता है
और न देखता है
न अपमान का भय
न गौरव पाने का मोह
वाह रे ताज
-------------------------
न घर में सज सकता है
उसकी तस्वीर देखकर
मैं मुस्कराकर रहा हूँ आज
संगमरमर के पत्थर से
कई हजार मजदूरों के
ख़ून पसीने से बना
दुनिया में प्रेम की निशानी के
रुप में उसका सीना तना
उसके लिए कहीं अस्त्र-शस्त्र से
कहीं शब्दों से होते थे प्रहार
अब वोट के लिए हो रहा प्रचार
खङा है सदियों से
अब भी उसे कहीं नहीं जाना
सफेदी में अब कोई
नया उजाला नहीं आना
फिर भी कभी बंटी-बबली बेच जाते हैं
कभी लोग हवा में सदेश लिख जाते हैं
पर न वह सुनता है
न वह कुछ कहता है
और न देखता है
न अपमान का भय
न गौरव पाने का मोह
वाह रे ताज
-------------------------
न घर में सज सकता है
न बाज़ार में बिक सकता है
फिर भी प्रेमियों के दिलों में
एक तस्वीर की तरह सजता है
ताजमहल को एक नहीं
हजार बार देखें फिर भी
दिल नही भरता है
मानो या न मानो
दुनिया का यह अजूबा अनमोल है
जिसे कोई खरीद -बेच नहीं सकता है
इसीलिये इसके जज्बातों पर
पैसे का दाव खेल जाता है
कोई लेकर इश्क का नाम
कोई दुनियां जीतने के बहाने
जज्बातों का व्यापर कर जाता है
लोगों की आह और वाह से
उनके थैले में दौलत का
अंबार लग जाता है
वाह ताज
तुझे बनाने वाले हाथो को सलाम
जो रुप तेरा आज भी नया नज़र आता है
-----------------------------
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें