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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

12/14/2014

योग साधक जान सकते हैं दूसरे के चित्त का हाल-हिन्दी चिंत्तन लेख(yoga sadhak jaan sakte hin chitta ka hal-yog sadhak jan sakte hain doosre chintta ka hal-hindi thought article based on patanjali yoga sahitya)



            अक्सर हम दूसरे लोगों के मन में चल रहे विचारों का अनुमान नहीं कर पाते।  अनेक लोगों की कथनी और करनी में इतना अंतर रहता है कि हमें पता चला जाता है कि उनसे किसी प्रकार की अपेक्षा करना व्यर्थ है मगर कुछ लोग बहुत चतुर होते हैं वह अपने भविष्य के कर्म का कोई आभास नहीं देते। ऐसे लोगों से हमें अक्सर व्यवहार में निराशा हाथ लगती है इनमें से अनेक ऐसे होते हैं जो हमसे नियमित संपर्क वाले नहीं होते पर किसी कार्य विशेष में सहयोग का आश्वासन देकर मुकर जाते हैं।  अक्सर हम लोगों की यह शिकायत सुनते हैं कि हमारे साथ दूसरे  धोखा करते हैं। अनेक लोग तो पूरे संसार के मनुष्यों पर विश्वास करने से कतराते हैं।
            पतंजलि योग सूत्र के आधार पर योग साधना करने वालों को इस समस्या से मुक्ति मिल सकती है।  इसके लिये यह आवश्यक है कि जब हम किसी दूसरे के मन का हाल जानना चाहते हैं तो पहले अपनी इंद्रियों को अतर्मुखी करें।  अपने मन की स्मृतियों की बजाय दूसरे के मन का स्मरण करें।  अनुभव करें कि आप उसकी जगह हैं।  ऐसे में आपकों उसके मन का ज्ञान हो जायेगा।   हम यह कर सकते हैं कि किसी विशेष काम का आग्रह किसी दूसरे व्यक्ति से करते हैं तो वह करेगा या नहीं इसका निर्णय यूं करें कि हम उसकी जगह होते तो करते या नहीं।  हमारे काम न करने पर उसकी कुछ ऐसी बाध्यतायें हो सकती हैं जिसका हमें उस समय आभास नहीं रहता जब हम अपना आग्रह उसके समक्ष प्रस्तुत करते हैं। चित्त योग से यह सहजता से जाना जा सकता है कि वह आशा पूर्ण करेगा या निराशा प्रदान करेगा।

पतंजलि योग सूत्र में कहा गया है कि
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चित्तान्तरदृश्ते बुद्धिबुद्धेरतिप्रसङ्गः स्मृतिसंकरश्च।।
            हिन्दी में भावार्थ-एक चित्त को दूसरे चित्त का दृश्य मान लेने पर वह चित्त फिर दूसरे चित्त का दृश्य होगा। इस प्रकार अनावस्था प्राप्त होगी। स्मृति का भी भी मिश्रण हो जायेगा।
            योग साधना कोई सीमित विषय नहीं है वरन् संपूर्ण जीवन में इसकी अनेक अवसरों पर आवश्यकता होती है।  खासतौर से जब सांसरिक विषयों में जितनी विविधता होती है उनमें सभी में प्रवीणता प्राप्त करना संभव नहीं है।  सभी सांसरिक विषयों का विस्तार मनुष्यों के पराक्रम से ही होता है जिसकी प्रकृत्तियां एक समान होती हैं। योग साधक जब विषय, कार्य और  कर्ता की प्रकृत्ति का ज्ञान प्राप्त कर लेता है तब वह अपने संपर्क केवल उन्हीं लोगों से करता है जिनकी प्रकृत्ति सात्विक और सहज होती है। 
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप 
ग्वालियर मध्य प्रदेश
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh


वि, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak Bharatdeep, Gwaliro
http://rajlekh-patrika.blogspot.com

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1 टिप्पणी:

Moti lal ने कहा…

ये तो बहुत अच्छी बात है। । मेरा भी एक हिंदी blog http://gyankablog.blogspot.in/

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