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1/25/2014

संत तुलसीदास दर्शन पर आधारित चिंत्तन लेख-दावों और वादों पर यकीन न करें(sant talsidas darshan par aadharit chinntan lekh-dovaon aur vaadon par yakin n karen)



      आधुनिक लोकतंत्र ने हमारे में आम मतदाता को अत्यंत महत्वपूर्ण बना दिया है। संसार के अधिकतर मनुष्य राजसी प्रकृत्ति के होते हैं पर सभी राजकीय कर्म नहीं करते न ही करना चाहते मगर जिनमें राजपद का मोह है वह आम मतदाता को लुभाने के लिये अनेक तरह के स्वांग रचते हैं।  इनमें अनेक लोग ऐसे होते हैं जो चुनाव से पूर्व किसी न किसी तरह अपनी धवल छवि सामान्य समाज में बनाये रखते हैं पर जब चुनाव हो जाता है उसके बाद जब उनकी असलियत सामने आती है तो अनेक बार लोग यह सोचकर दुःखी हो जाते हैं कि उन्होंने अपने मत का सही उपयोग न कर गलती की।  चुनाव के समय अनेक लोग लुभावने नारे देते हैं। कई बार तो वह ऐसे वादे करते हैं जिनको पूरा करना संभव नहीं होता। चुनाव लड़ने वाले अनेक लोग गलत वादे या सपने नहीं दिखाते उनको ऐसे प्रपंचियों को प्रचार का सामना करने में कठिनाई आती है। सभी प्रपंचियों को जीत भी नहीं मिलती पर जिनको मिलती है बाद में समाज उनके चयन पर पछताता है।
संत प्रवर तुलसीदास जी कहते हैं कि

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तुलसीखल वानी मधुर, सुनि समझिअं हियं हेरि।

राम राज बाधक भई, मूढ़ मंथरा चेरि।।

     सामान्य हिन्दी में भावार्थ-कुटिल लोगों की वाणी अत्यंत मधुर होती है इसलिये उनकी बात पर सोच समझकर यकीन करना चाहिये। मंथरा ने अपनी मधुर वाणी से केकयी को वश में कर ही राम के राज्याभिषेक में बाधा उत्पन्न की थी।

बचन वेष क्या जानिऐ, मनमलीन नर नारि।

सूपनखा मृग पूतना, दस मुख प्रमुख विचारि।।

     सामान्य हिन्दी में भावार्थ-वचन तथा  वेषभूषा से किसी मन के मलिन स्त्री या पुरुष की पहचान संभव नहीं है। सुपनखा, मारीचि, पूतना और दशानन रावण को उनके अपराधों से पहचाा जा सका।
      राजनीति में सक्रिय सभी लोग एक जैसे वस्त्र पहनते हैं। अधिकतर राजनेता शौक तथा उत्साह की वशीभूत राजनीति में आते हैं। उनमें छल, कपट या धोखा देने की विचार नहीं होता पर उन्हें भी ऐसे प्रपंची नेताओं की वजह से समाज सम्मान नहीं देता कि शायद वह भी उसी तरह के होंगे।  हम देख रहे हैं कि समाज में राजनेताओं के प्रति अनेक तरह के दुराग्रह पाल लिये गये हैं।  यह देखकर दुःख होता है कि हमारे देश में लोकतांत्रिक प्रणाली है और उसके स्तंभ यही राजनेता हैं पर उनकी छवि चंद प्रपंची नेताओं की वजह से खराब हो रही है।  इसके लिये पूरी तरह से राजनेताओं को भी जिम्मेदार नहीं माना जा सकता। जब आम मतदाता भ्रमित होकर स्वच्छ छवि और नीयत वाले नेता का चुनाव नहीं कर पाता तो उसे भी यह जिम्मेदारी लेनी ही चाहिये कि उसने अपने कर्तव्य का निर्वाह नहीं किया।  वह उन प्रपंची नेताओं के वादों तथा विचारों में बह गया जिनकी नीयत पहले से खराब थी जबकि उसके सामने उससे चयन के लिये बेहतर विकल्प मौजूद थे।  हम लोग राजनेताओं पर उंगली उठाने से पहले इस बात भी तो विचार करें कि एक मतदाता के रूप में हमने अपने कर्तव्य का निर्वाह किया तरह किया।


लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप 
ग्वालियर मध्य प्रदेश
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh

वि, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak Bharatdeep, Gwaliro
http://rajlekh-patrika.blogspot.com

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