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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

12/27/2013

अध्यात्मिक ज्ञान के अलावा भ्रष्टाचार रोकने का अन्य कोई उपाय नहीं-हिन्दी धार्मिक चिंत्तन लेख (adhyatmik gyan ke alawa bhrashtachar rokne ka anya koyee upay nahin-hindi dharmik lekh or hindu thought aritcle on curroption in india))

            हम देश में व्याप्त भ्रष्टाचार की जब बात करते हैं तो लगता है कि यह वर्तमानकाल की ही समस्या है। हम जब मनृस्मृति पर दृष्टिपात करते हैं तो लगता है कि यह समस्या मानवीय स्वभाव से जुड़ी है।  काम, क्रोध, लोभ, मोह तथा अहंकार की प्रवृत्ति तो देह में जीवात्मा के प्रविष्ट होने के साथ ही आ जाती हैं। यह अलग बात है कि कुछ लोग पारिवारिक संस्कारों, गुरुओं की सात्विक शिक्षा तथा मित्रों की सुसंगत के कारण अपने दुर्गुणो का सीमित शिकार होते हैं।  यह कहना ठीक नहीं है कि उच्च राजसी कर्म जिसे हम राजकीय कर्म में लगे हैं सभी शठ है पर इतना तय है कि मानवीय स्वभाव के कारण बड़ी संख्या में ऐसे राज्य कर्मचारी होते हैं जिनके मन में वेतन से इतर कमाने की चाहत भी होती है।  यह भी सच है कि सभी को भ्रष्टाचार का अवसर नहीं मिलता इसलिये थोपी गयी ईमानदारी का बोझ ढोते हैं। जिनको अवसर मिलता है वह अपने भाग्य की प्रशंसा करते हुए दोनों हाथों से पैसा बटोरते हैं।  दूसरी बात यह है कि हमारे यहां कानून इतने बने हैं कि किस विषय पर कौनसा नियम सही है या गलत इसका पता आम इंसानों को नहीं लगता जिसका लाभ वह राजकीय कर्मी अनुचित ढंग से उठाते हैं जिनका प्रत्यक्ष संपर्क प्रजा से रहता है।
मनुस्मृति में कहा गया है कि
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राज्ञो हि रक्षाधिकृतः परस्वादायिनः शठाः।
भृत्याः भवन्ति प्रावेण तेभ्योरक्षेदिनभाः प्रजाः।।
            हिन्दी में भावार्थ-राज्य में प्रजा की रक्षा के  लिये नियुक्त कर्मचारियों को दूसरे के माल हड़पने की शठ प्रवृत्ति होती है। ऐसे कर्मचारियों से प्रजा की रक्षा करना राज्य का कर्तव्य है।
ये कार्यिकेभ्योऽर्थमेव गृह्णीयुः पापचेतसः।
तेषां सर्वस्वमादाय राजा कुर्यात्प्रवासनम्।।
            हिन्दी में भावार्थ-प्रजा से कार्य करने के लिये उससे धन लेने वाले कर्मचारी की संपत्ति छीनकर उसे देश निकाला दिया जाना चाहिये।
            हमारे देश में कुछ समय पूर्व एक भ्रष्टाचार विरोधी अभियान चला था। इस आंदोलन के शिखर पुरुषों को प्रचार माध्यमों में खूब लोकप्रियता मिली। इसका कारण यह था कि देश में बेकारी, बीमारी तथा बुरी प्रबंध व्यवस्था से लोग उकता गये हैं जिससे वह आशा भरी नज़रों से इस आंदोलन को देख रहे थे।  इस आंदोलन से लोकप्रिय लोगों ने अपनी अपनी भूमिका के अनुसार आम जनमानस में अपनी नायकीय छवि बनायी जिसमें से कुछ ने तो उसे भुनाते हुए चुनावी राजनीति में पदार्पण कर सफलता भी प्राप्त की।  जब यह आंदोलन चल रहा था तो ऐसा लगा कि भ्रष्टाचार आज या अभी खत्म हो जायेगा ओर जनहित के काम धरातल पर दिखने लगेंगे।  यह नाटकीय घटनाक्रम चला। प्रचार माध्यमों को अपने विज्ञापनों का समय पास करने के लिये नये नायक मिले जिनकी गतिविधियों से उनके पास समाचार तथा बहसों की सामग्री का निर्माण हुआ।  वास्तविकता में देश की हालत वही है जो पहले थी। कहने का अभिप्राय यह है कि यह भ्रष्टाचार एक मानवीय समस्या है पर राज्य के शिखर पुरुष इसे तभी रोक सकते हैं जब वह अपने अंतर्गत काम करने वाले लोगों में दंड का भय पैदा करें। कुछ राज्य प्रमुख इसे नियंत्रित करते हैं पर सभी के लिये यह संभव नहीं हो पाता।
            कहा भी जाता है कि राजा का काल ही कलियुग, सतयुग तथा त्रेतायुग का निर्माण करता है।  जिन राज्य प्रमुखों के राज्य भ्रष्टाचार नगण्य रहा वह महान कहलाये वरना तो सब वैसे ही चलता रहा जैसे अब चल रहा है।
            भ्रष्टाचार से निपटने का यही उपाय है कि समाज में चेतना लायी जाये। इसका एक ही उपाय है कि लोगों को योगासन, ध्यान, मंत्र जाप तथा ध्यान के माध्यम से दैहिक, मानसिक तथा वैचारिक रूप से दृढ़ बनाया जाये। यह तभी संभव जब लोगों को  अध्यात्मिक ज्ञान निरंतर दिया जाये।  एक योगाचार्य ने अपने व्यवसायिक प्रयासों से भारत में योग विद्या का का प्रचार किया तो सारा समाज प्रभावित हुआ। एसा लग रहा था कि वह एक बेहतर समाज के निर्माण की दिशा में बढ़ रहे हैं।  समाज को दैहिक तथा मानसिक रूप से मजबूत बनाकर उसे आर्थिक तथा अध्यात्मिक विकास के समन्वित पथ पर  लाया जा सके। उन योगाचार्य ने धन और प्रतिष्ठा प्राप्त की और फिर अपना अभियान राजनीतिक विषयों की तरफ मोड़ दिया।  यह निराशाजनक स्थिति रही।  अब उन्हें कौन समझाता कि मानवीय प्रकृत्तियों को केवल योग और ज्ञान साधक ही लांघ सकते हैं।  बहरहाल भ्रष्टाचार से बचने का एकमात्र मार्ग यही है कि लोगों को अध्यात्मिक रूप से शक्तिशाली बनाया जाये।

लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप 
ग्वालियर मध्य प्रदेश
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
वि, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak Bharatdeep, Gwaliro
http://rajlekh-patrika.blogspot.com

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