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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

3/11/2010

पाकिस्तान के क्रिकेट खिलाड़ियों पर दंड का मामला-आलेख (punishment to pakistani cricket player-hindi article)

पैसे का खेल हो या पैसे से खेल हो, दोनों स्थितियों उसके उतार चढ़ाव को समझना कठिन हो जाता है क्योंकि कहीं न कहीं बाजार प्रबंधन उसे प्रभावित अवश्य करता है। हम यहां बात क्रिकेट की कह रहे हैं जो अब खेल बल्कि एक सीधे प्रसारित फिल्म की तरह हो गया है जिसमें खिलाड़ी के अभिनय को खेलना भी कहा जा सकता है। इस चर्चा का संदर्भ यह है कि पाकिस्तान के सात खिलाड़ियों को दंडित कर दिया गया है।
बात ज्यादा पुरानी नहीं है। भारत में आयोजित एक क्लब स्तरीय प्रतियोगिता में-जिसमें विभिन्न देशों के खिलाड़ियों को नीलामी में खरीदकर अंतर्राष्ट्रीय होने का भ्रम पैदा किया जाता है-पाकिस्तान के खिलाड़ियों को नहीं खरीदा गया। उस समय पाकिस्तान के प्रचार माध्यमों से अधिक भारतीय प्रचार माध्यमों में अधिक गम जताया गया। अनेक लोगों ने तो यहां तक कहा कि दोनों देशों के बीच मित्रता स्थापित करने वालों के प्रयासों को इससे धक्का लगेगा-जहां धन की महिमा है जिसकी वजह से बुद्धिजीवियों  लोगों की राजनीतिक सोच भी कुंद हो जाती है।
भारतीय फिल्मों एक अभिनेता ने-उसके भी भारतीय फिल्म उद्योग में नंबर होने का भ्रम अक्सर पैदा किया जाता है-तो यहां तक सवाल पूछा था कि आखिर बीस ओवरीय विश्व कप प्रतियोगिता जीतने वाले पाकिस्तान के किसी खिलाड़ी को इस क्लब स्तरीय प्रतियोगिता में भाग लेने के लिये क्यों नहीं खरीदा गया?
दिलचस्प बात यह कि यह अभिनेता स्वयं एक ऐसे ही क्लब स्तरीय टीम का स्वामी है जो इस प्रतियोगिता में भाग लेती है। उसका प्रश्न पूछना एकदम हास्यास्पद तो था ही इस बात को भी प्रमाणित करता है कि धन से खेले जाने वाले इस खेल में वह एक टीम का नाम का ही स्वामी है और उसकी डोर तो बाजार के अदृश्य प्रबंधकों के हाथ में है। बहरहाल अब तो सवाल उन लोगों से भी किया जा सकता है जो बीस ओवरीय विश्व कप प्रतियोगिता विजेता का हवाला देकर पाकिस्तान के खिलाड़ियों को न बुलाने की आलोचना कर रहे थे या निराशा में सिर पटक रहे थे। कोई देश के समाजसेवकों पर तो कोई पूंजीपतियों पर बरस रहा था।
पाकिस्तान ने एक ही झटके में सात खिलाड़ियों को दंडित किया है। इनमें दो पर तो हमेशा के लिये ही अतंराष्ट्रीय प्रदर्शन पर रोक लगा दी है। आधिकारिक रूप से टीम के आस्ट्रेलिया में कथित खराब प्रदर्शन को जिम्मेदार बताया गया है। कुछ अखबारों ने तो यहां तक लिखा है कि इन पर मैच फिक्सिंग का भी आरोप है-इस पर संदेह इसलिये भी होता है क्योंकि आजीवन प्रतिबंध लगाने के पीछे कोई बड़ा कारण होता है। यदि खराब प्रदर्शन ही जिम्मेदार था तो टीम से सभी को हटाया जा सकता है दंड की क्या जरूरत है? दुनियां में हजारों खिलाड़ी खेलते हैं और टीमें किसी को रखती हैं तो किसी को हटाती हैं। दंड की बात तो वहां आती है जहां खेल में अपराध का अहसास हो।
जिस टीम और खिलाड़ियों ने पाकिस्तान को विश्व विजेता बनाया उनको एक दौरे में खराब प्रदर्शन पर इतनी बड़ी सजा मिली तब खराबा प्रदर्शन की बात पर पर कौन यकीन कर सकता है?
फिर पाकिस्तान की विश्व विजेता छबि के कारण उसके खिलाड़ियों को भारत में क्लब स्तरीय प्रतियोगिता में शामिल न करने की आलोचना करने वाले अब क्या कहेंगे? उस समय उन्होंने जो हमदर्दी दिखाई गयी थी क्या अब वह जारी रख सकते हैं यह कहकर कि उनको टीम से क्यों निकाला गया? फिर भारतीय धनपतियों पर संदेह करने का कारण क्या था क्योंकि उस समय पाकिस्तान की टीम आस्ट्रयेलिया में दौरे पर थी और उसका प्रदर्शन अत्यंत खराब और विवादास्पद चल रहा था तब भला उसके खिलाड़ियों को कैसे वह बुलाते? क्योंकि उनका खेल खराब चल ही रहा था साथ ही वह तमाम तरह के विवाद भी खड़े कर रहे थे तब भला कोई भारतीय धनपति कैसे जोखिम उठाता?
वैसे अगर कोई बुद्धिमान पाकिस्तान पर बरसे तो उसका विरोध नहीं करना चाहिये। कम से कम इस खेल में हमारा मानना है कि दोनों देशों की मित्रता असंदिग्ध (!) है। अगर कुछ पीड़ित पाकिस्तान खिलाड़ियों के समर्थन में कोई प्रचार अभियान छेड़े तो भी मान्य है। मामला खेल का है जिसमें पैसा भी शामिल है और मनोरंजन भी! हैरान की बात तो यह है कि जिन खिलाड़ियों के भारत न आने पर यहीं के कुछ बुद्धिजीवी, नेता तथा समाजसेवक विलाप कर रहे थे-कुछ शरमा भी रहे थे-उनको टीम से हटाने में पाकिस्तान क्रिकेट अधिकारियों को जरा भी शर्म नहीं आयी। कितनी विचित्र बात है कि क्रिकेट के मामले में भी उन्होंने भारत के कुछ कथित बुद्धिजीवियों से अपनी दोस्ती नहीं निभाई जिसका आसरा अक्सर किया जाता है।
एक मजे की बात यह है कि पाकिस्तान के आस्ट्रेलिया दौरे पर खराब प्रदर्शन की जांच करने वाली वहां की एक संसदीय समिति की सिफारिश पर ऐसा किया गया है। जाहिर तौर उसमें वहां के राजनीतिज्ञ होंगे। ऐसे में वहां के भी उन राजनीतिज्ञों की प्रतिक्रिया भी देखने लायक होगी जो अपने कथित विश्व विजेताओं-अजी काहे के विश्व विजेता, दुनियां में आठ देश भी इस खेल को नहीं ख्ेालते-को भारत में बुलाने पर गर्म गर्म बयान दे रहे थे। अब उनको भी क्या शर्म आयेगी?
हमारा मानना है कि क्रिकेट कितना भी लोकप्रिय हो पर उसमें पैसे का भी  खेल  बहुत है। जहां पैसा है वहां प्रत्यक्ष ताकतें अप्रत्यक्ष रूप से तो अप्रत्यक्ष ताकतें प्रत्यक्ष रूप से अपना प्रभाव दिखाती हैं और यही इन खिलाड़ियों के दंड की वजह बना। वजह जो बतायी जा रही है उस पर यकीन करना ही पड़ेगा क्योंकि हम जैसे आम लोगों के लिये पर्दे के पीछे झांकना तो दूर वहां तक पहुंचना भी कठिन है। जो खास लोग पर्दे के पीछे झांकने की ताकत रखते हैं वह सच छिपाने में भी माहिर होते हैं इसलिये वह कभी सामने नहीं आयेगा! टीवी चैनलों और समाचार पत्र पत्रिकाओं में छपी खबरों के आधार पर तो अनुमान ही लगाये जा सकते हैं।
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://rajlekh.blogspot.com

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