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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

2/25/2010

अपने को अनमोल रत्न बताते-हिन्दी व्यंग्य शायरियां (anmol ratna-hindi comic poem)

वादों का व्यापार
दिल बहलाने के लिये किया जाता है,
मतलब निकल जाये तो
फिर निभाने कौन आता है।
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विषयों को भूल जाना
उनके सोचने का तरीका है।
अपनी कहते रहते हैं
सुनने का नहीं उनको सलीका है।
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बहसों को दौर चले
जाम टकराते हुए।
अपनी अपनी सभी ने कही
मुंह खुले पर कान बंद रहे,
इसलिये सब अनुसने रहे,
जब तक रहे महफिल में
लगता था जंग हो जायेगी,
पहले से तयशुदा बहस
परस्पर वार करायेगी,
पर बाहर निकले दोस्तों की तरह
बाहें एक दूसरे को पकड़ाते हुए।
-----------
कोई खरीदता तो
वह भी सस्ते में बिक जाते,
नहीं खरीदा किसी ने कौड़ी में भी
इसलिये अब अपने को अनमोल रत्न बताते।

कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://rajlekh.blogspot.com

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1 टिप्पणी:

कडुवासच ने कहा…

...सुन्दर रचनाएं !!!

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