कहीं खुश दिखने की
तो कहीं अपना मुहँ बनाकर
अपने को दुखी दिखाने की कोशिश करते लोग
अपने जीवन में हर पल
अभिनय करने का है सबको रोग
अपने पात्र का स्वयं ही सृजन करते
और उसकी राह पर चलते
सोचते हैं'जैसा में अपने को दिख रहा हूँ
वैसे ही देख रहे हैं मुझे लोग'
अपना दिल खुद ही बहलाते
अपने को धोखा देते लोग
कभी नहीं सोचते
'क्या जैसे दूसरे जैसे दिखना चाहते
वैसे ही हम उन्हें देखते हैं
वह जो हमसे छिपाते
हमारी नजर में नहीं आ जाता
फिर कैसे हमारा छिपाया हुआ
उनकी नजरों से बच पाता'
इस तरह खुद रौशनी से बचते
दूसरों के अँधेरे ढूंढते लोग
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आनंद उठाने का सबसे अच्छी तरीका यह है कि आप एकांत में जाकर ध्यान
लगायें-चिंत्तन (Anand Uthane ka tareeka-Chinttan)
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रोकड़ संकट बढ़ाओ ताकि मुद्रा का सम्मान भी बढ़ सके।
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हम वृंदावन में अनेक संत देखते हैं जो भल...
7 वर्ष पहले
3 टिप्पणियां:
इस तरह खुद रौशनी से बचते
दूसरों के अँधेरे ढूंढते लोग
--बहुत सही बात की है आपने.
दूसरों के अँधेरे ढूंढते लोग
सही। इस व्यवहार का मनोविज्ञान में भी उल्लेख है - ब्लेमिश के तौर पर।
आलोक
सोलह आने सच है भाई कि हम सिमटते जा रहे हैं अपने ही दायरे में,सही फरमा रहे हैं,कि-
''इस तरह खुद रौशनी से बचते
दूसरों के अँधेरे ढूंढते लोग''बार- बार पढ़ने योग्य है यह.
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