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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

10/17/2007

थोथा चना बाजे क्यों ना

जिन्हें बोलना चाहिए
वह खामोश हो जाते हैं
जिन्हे खामोश होना चाहिए
वह बोले जाते हैं
कहने वाले सही कह गये
'थोथा चना बाजे घना'
पर किसे समझाने कौन सुने
कान बंद कर लें
अपना ध्यान इधर-उधर लें
किसी को करना नहीं बोलने से मना
अपने ही बोले और लिखे शब्द का अर्थ
लोग नही जानते
अनर्थ पर बहस को
लोकतंत्र का प्रतीक मानते
दूसरे के दोषों पर डालें नजर
अपने गुणों के बखान पर
गुजारे दिन-रात का हर पहर
दुरूपयोग करें हर पल का
और कीमती वक़्त बताएं अपना

1 टिप्पणी:

मीनाक्षी ने कहा…

सटीक , सार गर्भित , गागर मे सागर. काश कि हम जो पढ़ते है उस अमल भी कर सकें.

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