हाथ हिलाते नारे लगाते
हाड़मांस के बुत
अब क्रांतिकारी कहलाते।
जहान के दर्द का बयान
करते आकर्षक शब्दों में
दवा के लिये बहलाते।
कहें दीपकबापू जीवन में
संघर्ष पथ पर चलते हुए
बरसों बीत गये
कागजी नायक पर्दे पर
आये गये
अपने दिल देह के घाव
लोग दिखते स्वयं ही सहलाते।
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दो हाथ दो पांव
दो आंखें दो कान
सभी इंसान एक जैसे लगते हैं।
अंदर झांककर नहीं देखा
कितने सोते
कितने जगते हैं।
कहें दीपकबापू बहस में
भाग लेते बहुत शख्स
कौन मूर्ख कौन विद्वान
तर्क से सभी ठग्ते हैं।
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दूरध्वनि यंत्र पर
आत्मचित्रण की
सुविधा अच्छी लगे।
प्रश्न यह कि
अपने में खोया
इंसान कैसे जगे।
बड़ी धरती पर
छोटी दुनियां बनाकर
आदमी खुद को ठगे।
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असुरों पर देवों की
विजय कथायें सुनकर
बड़े हो गये हैं।
संक्रमणकाल में
आये कोई अवतार
अकर्मण्य हाथ बांधे
प्रतीक्षा खड़े हो गये हैं।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप
ग्वालियर मध्य प्रदेश
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
Gwalior Madhyapradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak Bharatdeep, Gwaliro
http://rajlekh-patrika.blogspot.com
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