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3/31/2016

विकास बनाम लालच-हिन्दी कविता(Vikas banam lalach-HindiKavita)

विकास के स्तंभ
ऊंचे उठते हुए
कभी ढह भी जाते हैं।

टूटता है जब कहर
कुछ हारते दिल
कुछ सह भी जाते हैं।

कहें दीपकबापू मन के खेल में
इंसान लगा देता
जिंदगी दाव पर
लालच में फंसने से
कम ही रह पाते हैं।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप 
ग्वालियर मध्य प्रदेश

Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh


वि, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak Bharatdeep, Gwaliro
http://rajlekh-patrika.blogspot.com

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