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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका

2/26/2016

पर्दे के रंग-हिन्दी कविता(Parde ke Rang-Hindi Kavita)

अपना अपना हिस्सा
जुटाने में सभी लगे हैं।

दौलत के मेले में
कमजोर की बारी
जल्दी नहीं आयेगी
सभी अमीर पहले लगे हैं।

कहें दीपकबापू दुनियां में
बदलाव के किस्से
बहुत सुनते रहे
बड़े लोगों के आसरे
सपने बुनते रहे
सफेद पर्दा रंगीन हो गया
महलों का पता नहीं
आम बस्तियों में तो अब भी
मैले पर्दे लगे हैं।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप 
ग्वालियर मध्य प्रदेश

Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh


वि, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak Bharatdeep, Gwaliro
http://rajlekh-patrika.blogspot.com

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