अभी हाल ही में एक अभिनेत्री ने ‘मेरी पसंद’ शीर्षक के वीडियों में कुछ ऐसा कहा जिस पर विवाद छिड़ गया। कुछ
लोगों का कहना है कि वह महिलाओं के अधिकारों की बात कर रही है तो कुछ ने कहा वह
खुले यौन व्यवहार के लिये उकसा रही है।
अंतर्जालीय लेखन जगत में उस पर तमाम तरह के सवाल उठाये गये। यहां तक कि एक अन्य अभिनेत्री ने ही उसकी
आलोचना तक कर डाली। टीवी पर जमकर बहसें
चलीं। ऐसा लगता है कि एक तरह से वह प्रचार प्रबंधकों ने उसे प्रायोजित किया था।
वैसे भी ऐसा लग रहा है कि प्रचार के आधार पर जिनका दैनिक जीवन चलता है वह
अजीब से बयान देकर अपना लक्ष्य पूरा करते हैं और न हो तो टीवी में कार्यरत कथित
महान विद्वान उसे अजीब बना लेते हैं। इस तरह के प्रायोजन पर संदेह इसलिये होता है
क्योंकि अनेक बयान वैसे नहीं होते जिन पर चर्चा हो वरन् उनके शब्दार्थ और भाव को सनसनी पूर्ण बनाकर विवाद खड़ा किया जाता
है। प्रकाशन समाचार जगत में एक संवाददाता अपना समाचार देता है संपादक अपनी
दृष्टि से उसको प्रस्तुत करता है। ऐसा करते हुए अपने शब्द और भाव इस तरह प्रस्तुत
करता है कि संवाददाता भी दंग रह जाता है।
अब टीवी और इंटरनेट का ज़माना है।
इन माध्यमों का प्रभाव जनमानस पर इतना है कि राजपद के लिये होने वाले खेल
में इसकी भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो गयी है। यही कारण है कि इसमें बने रहने के
लिये अनेक लोग लालायित रहते हैं। इधर प्रचार प्रबंधक भी इस बात के लिये लालायित
रहते हैं कि हर दिन कोई सनसनीखेज विषय उनके पास आये। तब कोई बयान अगर नारियों से
संबंधित हो तो उसे बहस का विषय बना ही देते हैं।
शब्दों के बीच अपने विवाद वाले अर्थ सनसनीखेज भाव ढूंढ ही लेते हैं। यही कारण है बयान के दानदाताओं और उसका
व्यवसायिक उपयोग करने वाले प्रचार प्रबंधकों के बीच फिक्सिंग का संदेह होता
है। प्रत्यक्ष फिक्सिंग न भी हो एक
स्वाभाविक आपसी समझ तो हो ही सकती है।
हमारे यहां पेशेवर समाज सेवक, लेखक, कलाकार तथा संत हमेशा ही महिलाओं
के मानस पर प्रभाव जमाने का प्रयास करते हैं।
वह मानते हैं कि महिलाओं की वजह से पूरा परिवार उनका अनुयायी हो
जायेगा। उनकी यह सोच सही है। सैद्धांतिक
रूप से वह महिलाओं को शक्तिशाली मानते हैं पर व्यवहारिक रूप से उनको अशक्त और विवश
बताकर उनकी भावनाओं का दोहन उसी तरह करना चाहते हैं जैसे कोई चिकित्सक किसी रोगी
की सामान्य बीमारी भी घातक बताकर उसका दोहन करता है। हमारे देश में लोकतंत्र के
चलते समाज की व्याधियों को ठीक करने के लिये अनेक सेवक चिकित्सक की तरह व्यवहार
करने लगे हैं। जिस तरह सारे चिकित्सक बीमार के शोषक नहीं होते, उसी तरह सभी समाज सेवक
भी ऐसे नहीं है पर प्रचार के लिये समाज सेवक और संत महिलाओं के हितचिंत्तक खूब
बनते हैं।
देखा जाये तो महिला और पुरुष से ही मनुष्य समाज है। एक परिवार की समस्या का
दोनों एक ही साथ सामना मिलजुलकर करते हैं। तब उन्हें अलग अलग इकाई नहीं मान सकते।
जिस मुंबईया अभिनेत्री के वीडियो में कथित रूप से महिलाओं के अधिकार की चर्चा की
गयी है उसी के जवाब में पुरुषों के अधिकारों का भी वीडियो आ गया है। सवाल यह है कि
हम अधिकारों की बात करते हैं पर कर्तव्य को भूल जाते हैं। हमारा मानना है कि अधिकार का संबंध कर्तव्य
है पर पेशेवर चिंत्तक इस पर ध्यान नहीं
देते। उन्हें तो व्यवसायिक प्रचार तंत्र
में अपना नाम चलते देखना से ही मतलब है। निरर्थक बहसों के कारण कि आजकल का प्रचार
तंत्र समाज सुधार की संभावनायें तथा शक्ति दोनों ही खो चुका है। वह समाज की मूल
समस्याओं से हटकर उसका दोहन अपने व्यवसायिक हितों के लिये कर रहा है।
लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप
ग्वालियर मध्य प्रदेश
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
Gwalior Madhyapradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak Bharatdeep, Gwaliro
http://rajlekh-patrika.blogspot.com
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