केन्या में 150 ईसाई छात्रों की हत्या कर दी गयी है। कुछ समय पूर्व पाकिस्तान के पेशावर
ममें लगभग इसी संख्या के आसपास सैन्य स्कूल में छात्रों को मारा गया था। दोनों घटनाआं में एक ही धर्म समूह के लोग हत्या में लिप्त थे
जबकि पाकिस्तान में मृतक हत्यारों के समूह के ही थे तो केन्या में ईसाई हैं। अगर इन दोनों घटनाओं पर चर्चा एक साथ करनी हो
तो धर्म तत्व का सार ढूंढना संरल लगता है पर अगर हम इसे व्यापक संदर्भों में देखें
तो यह बात साफ हो जाती है कि आतंकवाद कोई अभियान नहीं वरन् एक व्यवसाय है। कहा जाता है कि कोई झगड़ा जड़, जोरू और ज़मीन के लिये
होता है। हमारे यहां प्रचार माध्यमों में जो लोग चर्चा करते हैं वह केवल वाणी, लेखन अथवा समाज सेवा की
दृष्टि से ही व्यवसायिक हैं पर विषयों के विस्तृत अध्ययन का उनमें अभाव है। इसलिये
आतंकवाद की घटनायें धर्म, जाति, भाषा तथा क्षेत्र से जोड़कर देख उस पर अपनी बात कहते हैं। हमारा मानना है कि
आतंकवाद के आकाओं के तीनों उद्देश्य-जड़ जोरू और जमीन-प्रा।प्त होते हैं इसलिये वह
धार्मिक तत्व की आड़ लेते हैं।
इस विषय में हमारी एक दूसरी भी मान्यता है कि इन हिंसक तत्वों को बिना
राजकीय सहायता के अपना व्यवसाय चलाने की ऐसी सुविधा नहीं मिल सकती जिससे वह अपने
लक्ष्य इतनी सहजता से प्राप्त कर लें। यमन में जब तक सुन्नियों का शासन था सऊदी
अरब को आपत्ति नहीं थी। जैसे ही वहां हिता शिया समाज का कब्जा हुआ वह हमला कर
बैठा। शिया ईरान भी हिता समाज का सहायक बन गया है। अभी सऊदी अरब ने वहां एक करखाने
पर हमला कर अनेक श्रमिकों को मार डाला पर उसकी आलोचना करने के लिये विश्व का कोई
भी वामपंथी संगठन आगे नहीं आया। देखा यह
जा रहा है कि वामपंथी देशों तथा संगठनों को मध्य एशिया में पैदा आतंकवाद से विशेष
लगाव है। शायद यही कारण है कि किसी ने श्रमिकों की हत्या पर सऊदी अरब की निंदा तक
नहीं की। सऊदी अरब और ईरान एक ही धार्मिक
विचाराधारा के हैं पर फिर भी आपस में उनकी नहीं बनती। इनकी धार्मिक, आर्थिक और सामनिक ताकत
इतनी है कि कोई भी दोनों पर आक्षेप नहीं कर रहा जबकि दोनों के झगड़े में करोड़ो लोग पिस
रहे हैं।
सच बात
तो यह है कि आतंकवादी भारत से बाहर के धार्मिक नेताओं और शासकों के लिये राजकीय
संपत्ति की तरह काम करते हैं। इसके लिये
प्रमाण की आवश्यकता नहीं है क्योंकि जो
देश ऐसा कर रहे हैं वह अंदरूनी रूप से आतंकवाद से मुक्त हैं। हम पहले भी यह लिख चुके हैं कि भारत में
धार्मिक आधार पर कभी हिंसक संघर्ष नहीं हुए पर विदेशों से आयी विचाराधाराओं की
प्रकृत्ति ही मेें संघर्ष का भाव है। जैसे विदेशी विचाराधाराओं के लोगों की संख्या
बढ़ेगी वैसे वैसे धार्मिक संघर्ष का भाव ही बढ़ेगा। समस्या यह है कि भारतीय धर्म की
रक्षा का जिम्मा ऐसे लोगों के पास माना जा रहा है जो निरर्थक बातों में अपना वक्त
जाया कर वाहवाही बटोरते हैं। कोई चुटकुले
सुनाकर लोगों की वाहवाही लूटता है तो कोई नारे लगवाकर लोगों को आंदोलित करता है।
इसलिये भारतीय धर्म की रक्षा के लिये ऐसे लोगों को आगे आना होगा जो गृहस्थ रहते
हुए धार्मिक आाधार पर जीवन जीते हैं।
उन्हें लोगों को बताना होगा कि समाज की रक्षा विशेष वस्त्र पहनकर नहीं होती
वरन् सामान्य ढंग से भी भारतीय अध्यात्मिक दर्शन के अनुसार सुखद जीवन जिया जा सकता
है।
---------------------------
लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप
ग्वालियर मध्य प्रदेश
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
Gwalior Madhyapradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak Bharatdeep, Gwaliro
http://rajlekh-patrika.blogspot.com
यह आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप का चिंतन’पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.अनंत शब्दयोग
4.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान पत्रिका
5.दीपक बापू कहिन
6.हिन्दी पत्रिका
७.ईपत्रिका
८.जागरण पत्रिका
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें