15 और छह मिलकर 21 ही होंगे। अब अगर कोई कहे कि 17 होते हैं तो कहा जायेगा कि मजाक ही कर रहा है। हालांकि तब यह भी देखा जाना
चाहिये कि मजाक कर रहा है या उसका गणित ही कमजोर है। शादी का विषय मजाक नहीं होता। एक समाचार यह है कि एक शिक्षित लड़की एक एक
अशिक्षित के साथ विवाह के लिये सजाई गयी थी। वह तैयार नहीं थी क्योंकि उसे अपने
भावी पति की अल्प बौद्धिक क्षमता के बारे में जानकारी मिल गयी थी। उसने अजमाने के
लिये यह प्रश्न कर लिया कि 15 और 6 मिलकर कितने होते हैं तो दूल्हे ने 17 का आंकड़ा दिया। लड़की ने तत्काल
विवाह से इंकार कर दिया। उसने ठीक किया। इस कलियुग को हम दोष चाहे जितने दें पर सच
यह है कि युवा नारियों या महिलाओं को लाज शर्म के बंधन से मुक्ति के लिये आधुनिक
शिक्षा एक योगदान इसी युग में ही प्राप्त हुई है।
हमारा देश ही नहीं वरन् पूरे विश्व
में ही नारियों की भूमिका उनके परिवार के पुरुष सदस्यों के साथ ही वरिष्ठ नारी
सदस्यों के विचारों के अनुसार तय होती रही है। यहां हम बता दें कि पुरुष ही नारी
का शोषक है जैसी बातों पर हम यकीन नहीं करते। अनेक स्थानों युवा नारियों के प्रति अधेड़ तथा वृद्ध महिलायें
भी वैसे ही कड़वा रुख दिखाती है जैसा कि पुरुष-हालांकि बढ़ती शिक्षा के साथ इस तरह
के कटु अनुभव कम होते जा रहे हैं।
आज युवा नारियों
के साथ एक नयी समस्या भी आ रही है। समाज
में कपंनी दैत्य के हाथ में पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था चली जा रही है और मध्यम
तथा निम्न वर्ग के पुरुष सदस्य अब गुलामी
की जुगाड़ करने में लगे रहते हैं-इसे हम आजकल की नौकरी को पुरानी बंधुआ मजदूर का
आधुनिक सभ्य रूप भी कह सकते हैं। एक तरह
से समाज आर्थिक अस्थिरता का ऐसा दौर है जिसमें पुरुषों पर आय अर्जित करने का
जिम्मा प्राचीनकाल की तरह बना हुआ है।
लड़की पढ़े लिखे तो उसे अनेक परिवार इसलिये भी अवसर देते हैं कि आगे जाकर
ससुराल में जाकर सुखी होगी पर लड़कों के बारे में सरकारी नौकरियों के अभाव के चलते
यह धारणा भी बनती जा रही है पढ़ने लिखने से उनका उद्धार नहीं होगा इसलिये उन्हें
बालपन समाप्त होते ही उन्हें धंधे या काम में लगा दिया जाता है। कुछ परिवारों में तो लड़कियों को लड़कों से अधिक
शिक्षा का अवसर मिल रहा है।
यह अच्छा लग
सकता है पर लड़कियों के लिये समस्या जस की तस है। अनेक जगह तो ऐसे जोड़े भी बन रहे
है जिसमें लड़का आठवी पास निज व्यवसाय में है तो लड़कियां उच्च शिक्षा प्राप्त हैं
पर वह ग्रहस्थी में रहने वाली हैं। मतलब
यह कि युवा नारियां शिक्षा की सुविधा अधिक होने के बावजूद समझौते के लिये बाध्य
होती हैं। ऐसे में उस लड़की की प्रशंसा ही
की जानी चाहिये जिसने समाज ही नहीं नारी कल्याण के लिये कार्यरत पेशेवर
बुद्धिमानों को भी आईना दिखाया है।
दीपक राज
कुकरेजा ‘भारतदीप’
ग्वालियर
मध्यप्रदेश
लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप
ग्वालियर मध्य प्रदेश
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
Gwalior Madhyapradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak Bharatdeep, Gwaliro
http://rajlekh-patrika.blogspot.com
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