भारत में आज नवरात्रि का पर्व प्रारंभ हो गया है। इससे एक दिन पहले ही भारत का एक अंतरिक्ष यान
मंगल ग्रह पर पहुंच गया। भारत इस तरह मंगल
पर यान भेजने वाला वह देश बना जिसका
अंतरिक्ष यान पहले ही प्रयास में सफल पूर्वक लक्ष्य तक पहुंचा। दूसरी बात यह कि इसमें खर्च बहुत कम आया
है। भारत की वैज्ञानिक संस्था इसरो के
विद्वानों ने यह साबित कर दिया है कि न केवल विश्व में हमारी स्थिति अध्यात्मिक
गुरु की है वरन् विज्ञान में भी हमारा कोई सानी नहीं होगा। ज्ञान साधक तथा चिंतन के अभ्यास से हम वैसे ही
इस निष्कर्ष को मानते हैं कि जो अध्यात्मिक अभ्यास में दक्ष है वह सांसरिक विषयों में भी सफल रहता
है। भारत में प्रबंध कौशल को अभी भी
व्यवसायिक मान्यता नहीं मिल पायी है वरना हमारा देश विश्व में अन्य देशों से अधिक
विकसित होता।
यह सामाजिक तथा आर्थिक नियंत्रक संस्थाओं में काम करने वाले पदाधिकारी ऊंचे
स्थान पर सार्वजनिक प्रबंध कौशल की बजाय अपनी निजी छवि के कारण पहुंचते हैं। अनेक लोग उच्च शिक्षा तो अनेक किसी शिखर पुरुष
की चाटुकारिता करते हुए शिक्षा, समाज सेवा, कला, साहित्य तथा अर्थोपयोगी संस्थाओं
पर काबिज हो जाते हैं। काबिज होने के बाद
वह सम्मान, उद्घाटन अथवा बैठकों की प्रथा निभाते हुए वह प्रतिष्ठा का सुख भोगते हैं और
संस्थाओं का प्रबंध वह अपने अधीनस्थों को सौंप देते हैं। कहने का अभिप्राय यह है कि जिस प्रबंध कौशल से
सांसरिक विषयों में उपलब्धि प्राप्त होती है उसे हमने कभी सम्मानीय माना ही नहीं
जिस कारण हम सांसरिक विषयों में अन्य देशों से पिछड़े रहे।
भारत की मंगल पर उपलब्धि अत्यंत प्रसन्नतादायी है। मंगल पर भारत की पहुंच
के बाद यह नवरात्रि का यह पर्व उत्साहपूर्ण वातावरण प्रारंभ हो गया है। इस तरह
ज्ञान और विज्ञान का संयोग भारत की प्रतिष्ठा को बढ़ाने वाला है।
हम जब भारतीय धर्म और संस्कृति की बात करते हैं तो हमारे अध्यात्मिक दर्शन
के कारण वह स्वर्णिम लगती है। ऐसे में मन में प्रसन्न होता है पर विश्व में जिस
तरह का हिंसक वातावरण चल रहा है वह अत्यंत निराशाजनक है। मध्य एशिया में तीन पश्चिमी नागरिकों के सिर
कलम कर दिये गये। यह तीनों पहले अपहृत किये गये थे। इनका किसी भी प्रकार से वहां
चले रहे हिंसक संघर्ष से संबंध नहीं था। न ही वह हथियार चलाने वाले थे मगर मध्य
एशिया में पल रहे बर्बर तत्वों ने उनको न केवल मारा बल्कि अपने ही दुष्कर्म की वीडियो
भी बनाकर प्रसारित की। यह बर्बर तत्व अपनी
विचारधारा के आधार पर पूरे विश्व समाज को चलते देखना चाहते हैं। भारतीय अध्यात्म की दृष्टि से यह असुर
प्रवृत्ति है। श्रीमद्भागवत गीता के संदेश के अनुसार व्यक्ति अपना उद्धार करने का
प्रयास करे न कि दूसरे पर अपने विचार लादने में समय नष्ट करे। एक तरफ विश्व के वैज्ञानिक विश्व को अपने
प्रयासों से आगे ले जा रहे हैं वह बर्बर तत्व जीवन के पहिये को पीछे ले जाना चाहते
हैं। इसमें वह सफल नहीं होंगे यह तय है पर
वह मानव समाज पर तनाव बनाये रखने की उनकी प्रकृति भी खत्म नहीं होगी। इन लोगों के
पास न ज्ञान है विज्ञान ऐसे में वह विध्वंस से धन और प्रतिष्ठा अर्जित करना ही वह
अच्छा मार्ग मानते हैं। ऐसे में हमारी भारतीय विचारधारा एक मात्र मार्ग लगती है जो
विश्व समुदाय का मार्ग प्रशस्त कर सकती है।
अध्यात्मिक ज्ञान का अर्थ यह कदापि नहीं है कि मनुष्य अपने सांसरिक कर्म
त्याग कर बैठ जाये। नित्य नित्य नई खोज
करना भी एक यज्ञ है। अध्यात्मिक ज्ञानी को
विज्ञान में दक्षता होना चाहिये। भारतीय वैज्ञानिकों ने यह साबित कर दिया है कि वह
देर से ही सही उस मार्ग पर आ गये हैं जहां भारत अध्यात्मिक दर्शन तथा सांसरिक
विषयों में संयुक्त रूप से श्रेष्ठता प्राप्त कर विश्व में एक उच्च स्थान प्राप्त
कर लेगा।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप
ग्वालियर मध्य प्रदेश
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
Gwalior Madhyapradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak Bharatdeep, Gwaliro
http://rajlekh-patrika.blogspot.com
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